ऑंखों से मेरी ढलता हुआ खारा सा पानी
एहसासों को समेटे, यही तेरे प्रेम की निशानी!!
हमेशा कब रही है ,ठहरी हुई रबानी
हिचकोले खाती रही,समन्दर में जिंदगानी!!
बीच मझधार में भी बढ़ती रही कहानी
वो दूर होता गया,मेरी बढ़ती रही दीवानगी!!
चंद दिनों का किस्सा, और यादों की जुबानी
मजबूरीयां कहता रहा, दोनों की आंखों का पानी !!
बड़ी शिद्दत से करते रहे, हम रहे यादों की अगवानी
दूर हो कर भी,दिल पर हक बना गया मालकानी !!
कभी ग़म,कभी खुशी,ये वक्त की छेड़खानी
फिर मिलने की अब ना चलेगी तेरी ये आनाकानी !!
स्वरचित✒️✒️
कीर्ति चौरसिया जबलपुर मध्यप्रदेश