एक कली मासूम सी
दुनियां के रंग से अंजान सी
रखा पहला कदम यौवन में
अपने ही आप में मग्न सी,
दूर देश से आया कोई भंवरा
हो गया देख उस कली को
मुग्ध मोहित रख दिया दिल
रूप उसके पर मर मिटा
विनती तरह तरह से करने लगा
खाई कसमें और दी वादों की
दुहाई पल पल की ,
देख भोली सूरत पिघल गई
न मन में छिपी दुष्टता देख सकी,
पी रस यौवन और इज्जत का
उस गया न जाने कहा वो हरजाई,
प्रेम की निशानी समझ पाल रही
कोख में वो अपने प्रीतम की
दुनियां को लगे पाप किया है
दुत्कार बारंबार लगातार रही ,
सोचती , लगातार समझती
एक स्त्री पुरुष का प्रेम मिलन
फिर कसूरवार अकेली वो कैसे बनी ,
युग दर युग बीत गए आई
बार समझ न आज भी ।।।।।
© रेणु सिंह राधे ✍️