देखो वासंतिक बेला है आई,
संग में नवल बयार को लाई।
उषा नयी औ रात निराली,
आशा का संचार है आली।
पीत वर्ण की छवि है न्यारी,
रौनक इसकी कवि पर भारी।
अवतरण-दिवस है कविवर का “निराला,
जिसने प्रकृति से साहित्य रच डाला।
छायावाद की धूम मचाई,
काव्य के प्रति रुचि जगाई।
कहते हैं निराला का साहित्य,
है उनके व्यक्तित्व सा निराला।
विरही मन का मिलन है नूतन,
प्रेमी मन के भाव पुरातन।
नवल कलियाँ चहक रही हैं,
सुमन बगिया महक रही है।
मधुर पिक जो कूक रही है,
विरही दिल में हूक उठी है।
देख सुखद वासंती ‘सुषमा’,
जिसकी नहीं है कोई उपमा।।
रचयिता-
सुषमा श्रीवास्तव
मौलिक कृति
सर्वाधिकार सुरक्षित