गलियों. में ? ”
सोहेल ने आग्रह पुर्वक बाबूजी से कहा!
बाबूजी अभी भी शांत मुद्रा में बैठे थे,उनका मौन रहना ही अस्वीकृती का संकेत था फिर भी सोहेल बाबूजी को मनाने का भरसक प्रयास करता रहा।
ऋचा, पिता – पुत्र की बातें सुनकर वापस अपने कमरे में चली गई।
“पता नहीं कौन सा अमृत मिल रहा है यहां, जो बाबूजी ये,घर छोड़ने का नाम नहीं ले रहे।”
सोहेल बड़बड़ाता हुआ अपने कमरे में
आ गया।
” आप शहर जाने की जिद क्यूं कर रहे हैं?”
एक घंटे तो लगते हैं शहर जाने मे
हम यहां से। भी। अ पना कार्य कर सकते हैं । ” ॠचा। ने समझाया । पर सोहेल ने किसी की नही सुनी।
चंद्रशेखर बाबू एक सरकारी कर्मचारी रह चुके थे। एक संपन्न और खुशहाल परिवार था उनका । विगत वर्ष श्री मती का स्वर्गवास हो गया था। जहां हर पल उन्हे अकेला पन खलता वहीं , बेटा- बहू उनकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ते। नन्ही सी पौत्री रिया में उनकी जान बसती । सोहेल भी अच्छे पोस्ट पर था ,पर सोहेल को गांव की जींदगी पसंद नहीं थी । आखिरकार बेटे बहू की खुशी के लिए उन्होंने गांव अकेले रहने का फैसला किया ।
“पापा क्यूँ नाराज़ है मम्मा ?” नन्ही रिया ने सोहेल का एक्सप्रेशन देख मां से पूछा।
“कुछ नहीं बेटा , पापा थके हुए हैं …!
तुम दादा जी के पास बैठो ।”
रिया दौड़ती हुई दादा जी के पास चली गई।
खामोश बैठे दादाजी के चेहरे पर बच्चों वाली मुस्कान आ गई।
” आ गई मेरी गुड़िया ..!”
दादा जी चहक उठे ।
हाँ, दादू!
” आपको पता है पापा बहुत एन्ग्री हैं ।”
“क्यों?” दादा जी ने अनमने भाव से पूछा।
” वो थक गए हैं इसलिए ..!”
अच्छा ! दादा जी संक्षिप्त उत्तर दिये ।
” दादाजी! जब मैं शहर चली जाऊंगी तो आप किसका नाम लेकर बुलाइयेगा ?” मासूम रिया की बातों में दादाजी के लिए चिंता जाहिर हो रही थी।
“आपको बुलाऊंगा ..मेरी गुड़िया को..!”
“जब मैं नहीं आऊंगी तब ..?”
“फिर थोड़ा रो कर चुप हो जाउंगा ।” दादा जी बनावटी हंसी के साथ बोले ।
” नहीं ! दादू आप भी हमारे साथ शहर चलिये ,हम लोग कार में घूमेंगे, आइसक्रीम खाएंगे बहुत मस्ती करेंगे। है न दादू?”
” अब आप सो जाओ बेटा ।” दादाजी अब खुद से बातें करना चाहते थे।
रिया मां के पास चली गई, और चंद्रशेखर बाबू पुराने ख़्यालों में डूब गये। एक साल पहले तो शांति ने मुझे अकेला कर दिया, और अब बहू – बेटे ..।
” आज सचमुच बुढ़ापे का अहसास होने लगा था ,हो भी क्यूं न; उम्र ढलने से ब्यक्ति बूढ़ा नहीं होता, लेकिन जब औलाद घर का फैसला खुद करने लगे तो वास्तव में ब्यक्ति बूढ़ा हो जाता है। ”
बहू-बेटे ने पैकिंग पूरी कर ली ।शहर में फ्लैट ले लिया गया। चंद्रशेखर बाबू के देखभाल के लिए एक नौकर भी रख लिया गया ।
“अब तो आपको कोई असुविधा नहीं होगी बाबूजी ?”
बिरजू हर वक्त आपही के पास रहेगा। कार भी अच्छा ड्राइव कर लेता है। कोई बात हो तो आप बेहिचक हमें काॅल कीजियेगा ,हम शीघ्र ही उपस्थित हो जाएंगे।
“अच्छा बेटा!अपने जन्म दिवस को घर आ जाना। शान्ती तुम्हारे हर जन्मदिवस को गंगा घाट जाती थी अब हमलोग साथ में चलेंगे। ” बाबूजी के शब्दों में आदेश और आग्रह का मिश्रित भाव था ।
” ठीक है बाबूजी !” सबने पैर छूए और कार में बैठ गये।
बाबू जी अपने बेबस नजरों से सबको दूर जाते हुए देखते रह गये ।
हर शाम बहू-बेटे का काॅल आता उन कुछ पलों में बाबूजी अपना अकेला पन भूल जाते।
” अब अगले हप्ते सोहेल का जन्मदिवस है ,हमसपरिवार गंगा घाट जाएंगे। नन्ही रिया को हर मेले में सिर्फ बांसुरी हीं चाहिए। कितना बांसुरी इकट्ठा कर लिया है उसने।”
बाबू जी के चेहरे पर चमक और होठों पे मुस्कान आ गई।
सुबह पांच बजे सोहेल का नंबर देख कर बाबूजी का चेहरा खिल उठा।
” हेलो!
बाबूजी प्रणाम!
हाँ बेटा ! जुग जुग जियो मेरे लाल , कबतक आ जाओगे ? “
समय से आओ गंगा घाट चलना है न?”
चन्द्रशेखर बाबू की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी ।
शाम हो जाएगी बाबूजी दिन में पार्टी भी देनी है फिर मै निकलूंगा कल सुबह चलेंगे गंगा घाट ।
ओ..के .. बेटा ! बुझे हुए स्वर में बाबूजी बोल पड़े।
ठीक है बाबूजी प्रणाम !
चंद्रशेखर बाबू के चेहरे पर कई भाव आये और गये ..।
“शांती ! तुम्हारे अनुपस्थिति में मैं अब मां की भुमिका भी करूंगा मेरा साथ देना शांती। “
कंधे पर गमछा रखे ,हाथ में छड़ी संभाला और गंगा घाट के लिए चल पड़े। पैर जवाब दे रहे थे किन्तु शांती की मन्नत है नंगे पांव पैदल चल कर गंगा घाट जाना है, इसी गंगा मां से मुझे पुत्र स्नेह का सौभाग्य प्राप्त हुआ है ।
” पापा…! बांसुरी चाहिए ।” खिलौने का अंबार लगा था पर रिया बांसुरी की रट लगाए जा रही थी।
“अच्छा बेटा!” सोहेल चारो तरफ नजर दौड़ाने लगा।
पार्टी के बाद अब घर वापसी का समय हो गया था।
सोहेल ने कार एक तरफ पार्क किया और बांसुरी खरीदने के लिए निकल पड़ा। काफी देर तक चलने के बाद भी कहीं बांसुरी की दुकान नहीं दिखी । चारों तरफ नजर दौड़ाने के बाद अब वो पुनः लौटने वाला था कि उसे सामने से बाबूजी आते हुऐ दिखे ।
” इतनी धूप में बाबूजी ..?” वो भी पैदल ..अरे ! पैर में जूते भी नहीं है। शायद बाबूजी गंगा घाट से वापस आ रहे हैं। अपनी कार होते हुए भी बाबूजी पैदल जा रहे हैं । “
.उसे ग्लानि होने लगी। उसने फ़ौरन एक आटो को रोका
और -” सुनो ये पैसे रख लो और उन्हे उनके गंतव्य तक पहुंचा दो ।”
“आप कौन हैं, और वे आटो से जायेंगे, आपसे किसने कहा?”
ऑटो वाले की बात सुनकर सोहेल हैरान रह गया ।
“आप जानते हैं क्या उन्हे?” सोहेल ने उत्सुक हो कर पूछा।
” हाँ!कौन नहीं जानता चंद्रशेखर बाबू को । ”
” एक मसीहा के रूप में वो आये थे वो
गंगा घाट पर ,जब एक विक्षिप्त महिला ने अपने बेटे को गंगा नदी में फेंक दिया और खुद ट्रेन के सामने कुद कर खुदकुशी कर ली ।”
तब चंद्रशेखर बाबू अपनी जान पर खेल कर उस बच्चे को बचा लिए और तबसे वे अपनी पत्नी के साथ हर वर्ष पैदल गंगा घाट पर आते हैं और हम सभी ऑटो वालों को गमछा बांटते हैं। इतनी देर में ॠचा का कई काॅल आ चुका था।
” साहब अपना फोन उठाइए। ”
ऑटो वाले की बात सुनकर सोहेल की तंद्रा भंग हुई। ” उसने फौरन उत्तर में मैसेज छोड़ा और कार तक पहुंचा ।
फौरन कार की स्पीड बढाई और घर जा पहुंचा । पत्नी और बच्चों के साथ बाबूजी की प्रतीक्षा करने लगा। दरवाजे पर बहू- बेटे को देख कर बाबू जी के प्रसन्नता की सीमा नहीं रही। नन्ही रिया दौड़ कर दादूसे लिपट गयी ।
“दादाजी मेरी बांसुरी ..! ” रिया ने हाथ फैलाया ।
ये लो ! दादा जी से बाँसुरी पा कर रिया प्रसन्न हो गई ।
” बेटा जल्दी आ गये तुम सब ?” अभी तो मैंने तुम्हारे लिए उपहार भी नहीं मंगाया । चंद्रशेखर बाबू अपनी खुशी जाहिर करते हुए बोले।
“उपहार तो अब मैं दूंगा बाबूजी आपको ।”
सोहेल मुस्कुराते हुए बोल पड़ा।
“अच्छा!क्या मै फिर दादा बनने वाला हूं?” मुस्कुराते हुए बाबूजी बोल पड़े।
“बाबूजी अब फिर हमलोग साथ रहेंगे। अब हमें शहर नहीं जाना।”
चलिए सेल्फी लेते हैं। आज दादा जी की स्माईल सबकी स्माईल से अलग थी ।
आज सोहेल अपने भूल का प्रायश्चित कर चुका था।
समाप्त