इंसान को जब अपने
अनजाने भूल का खेद हुआ
अंतर्मन से क्षमा मांग
उसका हृदय जो व्यथित हुआ
न चाहता था दुख देना
अहम में अपने चूर हुआ
भूल पर भूल वो करता गया
उसे कभी न संताप हुआ
आया फिर एक दिन ऐसा
दुख दूसरो का सहन न हुआ
कर्म का पहिया घूमे ऐसे
हृदय को जो महसूस हुआ
अहम के छलावे से जो किया
वह आज ग्लानि से पूर्ण हुआ
फिर मन में संकल्प लिया
इंसान को तब प्रायश्चित हुआ………….
मनीषा ठाकुर (कर्नाटक)