उस राज्य की एक प्रथा थी कि ,बारिश से पहले नदी में स्थित जलदेवता ,का विवाह धूमधाम से किया जाता था।ये कहा जाता था ,अगर इस प्रथा को नहीं निभाया गया तो जलप्रलय आ जाएगा ,देवता रूष्ट हो जाएंगे।
नदी के देवता के लिए लडकी लाने का काम तीन महिलाएं ,जो अपने को पुजारिनें कहलाती थीं करती थीं।
इसके लिए प्रजा से अनुचित कर वसूला जाता ,और प्राप्त धन को सब आपस में बांट लेते।राजा इन सभी चीजों से अनजान रहता।
वो महिलाएं राज्य में घूम घूम गरीब घर की सुंदर नवयुवती को जल देवता के लिए चुनती।लड़की को 10दिनों तक एक कमरे में बंद किया जाता था,और फिर विवाह के दिन खूब दुल्हन को सजाया जाता था ,एक चटाई पर बिठा कर उसे जल देवता के हवाले कर दिया जाता।
लड़की कुछ देर पानी में तैरती फिर अंदर चली जाती।फिर वे पुजारिने ऐलान करतीं, कि देवता प्रसन्न हो गए ,अब किसी की जानमाल की हानि नहीं होगी।
इस बार नदी के पास जब भीड़ इकट्ठा हुई,जलदेवता के विवाह के लिए ,तब राजा विक्रांत भी अपने सैनिकों,सेनापति के साथ पहुंचे।
उन्होंने वहां पहुंच कर लड़की को उन्हें दिखाने को कहा।
राजा के पास दुल्हन लाई गई ।राजा ने दुल्हन को देखा और कहने लगा ये तो तनिक भी सुंदर नहीं है,क्या राजा बदसूरत लड़की से शादी करेंगे।
चारो ओर सन्नाटा छा गया,जो अभी ढोल,नगाड़े बज रहे थे,अचानक बंद हो गए।ये राजा ने क्या कह दिया।
राजा ने रुक कर कहा _मैं वृद्ध पुजारिन से गुजारिश करूंगा कि वो जल देवता से नई दुल्हन खोज लाने को अतिरिक्त समय मांग आएं।
सैनिकों इन्हें पानी में डाल दो।
सैनिकों ने आदेश का पालन किया,वृद्ध पुजारिन को नदी में डाल दिया गया।
काफी देर हो गई ,नदी से कोई नहीं आया,तो राजा ने कहा,दोनो और पुजारिनो को भी पानी में डालो ,ताकि ये लोग हाल खबर लेकर हमें बता सकें।
फिर कोई नहीं आया,तब राजा ने कहा _कोई और जाना चाहता है,हमारे जलदेवता की मेहमाननवाजी का आनंद लेने।
सभी भ्रष्ट अफसर बगलें झांकने लगे। किसी की हिम्मत नहीं हुई ,अपनी जान देने को।
तब से ये अफसरों द्वारा धन उगाही का खेल खत्म हुआ।
राजा विक्रांत की छवि प्रजा में एक लोकप्रिय राजा के रूप में हुई।
स्रोत_लोक कथाएं