विलग हुए पत्तों से पूछा मैंने,
दर्द तो हुआ होगा,
हवा के झोंके के साथ उड़ते बोले,
हां मगर कम,
मैं हैरान थी ये क्या जवाब,
तभी उत्तर मिला एक नया अंदाज,
मेरा विलगन प्रकृति है,
नूतन किसलय आने के लिए।
दरख़्त से फिर पूछा मैंने,
बोला जरूरी था,
वो स्वतंत्र थे मुझे छोड़ जाने को,
कौन मैं मौन मैं,
क्या बहाना बनाता,
उन्हें रोक पाने के लिए,
यही प्रकृति है,
यही नियत है, 
नए किसलय आने के लिए।
दोनों समर्पित थे विलग हो जाने के लिए।
कवयित्री इंदु विवेक 
स्वरचित
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