तेरे होने से मैं चूक रहा हूँ,
आज यह इम्तिहान हमारा है…
कभी तकलिफ़ की आहट भी ना मिला,
ये रातें भी हमने रोते-रोते गुजारा है…
यह कैसी कसमोकस है लफ़्जों की,
ना-हा-हा-ना में मिल पायें…
उन्मुक्त गगन की चिड़ियाँ बनके,
खुले आसमां तक ऊड़ पायें…
कभी हिम्मत करके हाँ भरों तो,
देखो एक बार हमारे नजरों से…
रूप तरुन की गहराई में,
विरक्त-प्रेम की अँखियों से…
मोह की ताले खोलो रे मन,
वैराग्य नहीं है पथ प्रेम की…
छुटे नहीं कभी ये अर्पण,
तेरी यादों की दिल के डोर की…
✍विकास कुमार लाभ
मधुबनी(बिहार)