तुम प्यार की मूरत हो
हम सबकी जरूरत हो
मां की इज्जत पिता की जान
दो दो कुल की एक पहचान
तूं आंगन की खुशहाली
तुम शुभ मुहूरत हो
तुम प्यार की……..
हम सबकी……
तूं ही परंपरा तूं मर्यादा
सभी भार तेरे सिर ज्यादा
तूं ही वंश वृद्धि की ज्योति
तू ही गर्भ पंक को धोती
हवि बनने को तत्पर रहती
जहां जरूरत हो
तुम प्यार की ……
हम सबकी……..
पिता,पति और पुत्र संभाले
हर विपदा आगे बढ़ टाले
हो स्वतंत्र ज्यूं पैर निकाले
तीनों ओर से चुभते भाले
तेरे सपनों की बलि देता
जिसे जरूरत हो
तुम प्यार की………
हम सबकी………..
हर दुख भाग्य लेख पर छोड़े
टूट – टूट कर निज गृह जोड़ें
अकथ-अगम है तेरी क्षमता
सर्वकाल में रखती समता
रोम रोम में भरकर “ममता”
अति खूबसूरत हो
तुम प्यार की ……..
हम सबकी……….
स्वरचित रचना,
ममता उपाध्याय
वाराणसी