सर्दी की धूप,
गर्मी में शीतल छांव है मां,
हरी-भरी खेतों सी,
एक सुंदर सा गांव है मां।
दिल का सुकून,
रातों की गहरी नींद है मां,
कांधे की थपकी,
आंखों के नमी की आंचल है मां।
रसोई की सुगंध,
गमले में लगी तुलसी है मां,
घर की आभा,
आंगन में जलता दीपक है मां।
कंगन की खनक,
नूपुर का बजता रुनझुन है मां,
साड़ी का सितारा,
माथे पर सजी सुर्ख बिंदी है मां।
आंचल में बंधा चावल,
चुपके से दी गई सौगात है मां,
पैरों की अलता,
स्नेहालेप, प्रेमालिंगन है मां।
पीहर की पगडंडी,
चौखट पर सजी रंगोली है मां,
मां ही तो पीहर,
द्वार पर टकटकी बांधे प्रतीक्षा है मां।
विधाता का उपहार,
इस जीवन का आधार है मां,
जिंदा है बचपन,
जिस किसी के भी पास है मां।
स्वरचित रचना
रंजना लता
समस्तीपुर, बिहार