डॉक्टर प्लीज मेरे बेटे को बचा लीजिए,_ गिड़गिड़ाते हुए ये शब्द एक बेबस पिता के ये शब्द थे।
पर हम जो कर सकते थे हमने किया, अब तो सब ईश्वर के हाथ है।आप सिर्फ प्रार्थना कर सकते हो_कह कर डॉक्टर कमरे से निकल गए।
बेटे की आंखें देख पिता का कलेजा दहल उठता,जैसे वो कह रहा हो ,पिता जी किसी भी तरह मुझे बचा लीजिए ,मैं और जीना चाहता हूं,दुनिया देखना चाहता हूं।
इंसान पूरा जीवन पैसे के पीछे भागता रहता है,विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ईश्वर को भी चुनौती दे दी है ,लेकिन एक जगह आ कर सभी बेबस हो जाते हैं वो है मौत।
सुर साम्राज्ञी लता जी ने कहा था ,तीन चीज़ों पर अपना बस नही है,वो सब ईश्वर के हाथों में है_
1)हम जन्म कहां लेंगे इसे इंसान कहां जान पाया है,किस मां के भ्रूण में उसका भरण पोषण होगा।
2)विवाह
3)मृत्यु
वह किशोर जिसकी उम्र 14 साल की थी,उसका वजन घटते घटते सिर्फ 30 किलोग्राम रह गया था।मधुमेह के कारण वह लड़का धीरे धीरे कोमा की ओर बढ़ रहा था,बाप बेटे की बैचेनी बढ़ रही थी।पिता दौड़े दौड़े डॉक्टर के पास पहुंचे _डॉक्टर कोई तो दवा होगी? मैं अपने बच्चे को बचाने के लिए कहीं भी जाने और कुछ भी करने को तैयार हूं।
डॉक्टर भी इंसान ही होता है ,एक सीमा पर आकर वो भी असहाय हो जाता है,हताशा उन्हें भी थी ,आखिर झल्लाते हुए उन्होंने कहा_एक दवा है तो लेकिन अभी उसपर प्रयोग ही चल रहा है,अभी उसे कुत्तों पर आजमाया गया है ,कभी लाभ दिखता है कभी नहीं।
पिता को उम्मीद की किरण दिखाई पड़ी,उसने उत्सुकता से प्रश्नों को झड़ी लगा दी,कौन सी दवा,कहां है,कौन देगा।
डॉक्टरों ने कह तो दिया था लेकिन सिर्फ टालने के लिए, डराया भी था कि कभी इसके प्रयोग से फायदा होता है तो कभी नहीं भी।
लेकिन एक पिता के लिए ये बहुत बड़ी उम्मीद थी,वैसे भी बेटा कभी भी साथ छोड़ सकता था ,उसे लेकर वो हाथ पर हाथ रखकर देखना नहीं चाहते थे।
डॉक्टरों ने पिता के राजी होने पर ,एक और अस्त्र फेंका _तुम अपने बेटे से भी तो पूछ लो।
बेटा भी तैयार था। अंततः डॉक्टरों को तैयार होना पड़ा।
हमारा शरीर एक मशीन की तरह कार्य करता है,हम अपने भोजन में क्या ले रहे है,क्या ठीक है क्या नहीं।पेट में जाकर हमारे अंगों को बहुत कार्य करना होता है।तरह तरह के पाचक द्रव्य,हारमोंस सब अपने कार्य में लग जाते हैं।अंदर पेट से भयावह आवाज़ें गूंजती हैं,ऐसा लगता है की अंदर भी कोई संघर्ष हो रहा है।ऐसे ही अग्नाशय शर्करा को नियंत्रित करता है,और प्राकृतिक इंसुलिन का निर्माण करता है।जब अग्न्याशय में इंसुलिन क्या निर्माण बाधित हो जाता है,तब शरीर में शर्करा कुछ ज्यादा मात्रा में घुलने लगता है,इससे एक बीमारी होती है जिसके नाम से आप सभी भली भांति परिचित होंगे मधुमेह।
इसका जिक्र हमारे पुराणों में भी था,इसे राजरोग भी कहते हैं,इसके लिए वैद्य अधिक परिश्रम करने की सलाह देते थे,खान पान में सुधार और उपवास की सलाह देते थे।
इंसुलिन की खोज सन 1889 से शुरू हो गई थी,1908 तक इसमें कोई ज्यादा बेहतर परिणाम नही आए।शोध जारी रहा,आखिर में यह जिम्मेदारी अमेरिकी मूल के कनाडाई सर्जन फ्रेडरिक बैंटिंग और चार्ल्स बेस्ट को जॉन मैक्लियड के निर्देशन में करने को मिला।उन्होंने कुत्ते के पैंक्रियाज से इंसुलिन को अलग कर लिया यह गाढ़े भूरे रंग के कीचड़ की तरह दिखता था,जिसे बिना पैंक्रियाज के कुत्ते को दिया गया और उसे फायदा हुआ।
डॉक्टरों ने आखिरकार इस किशोर पर अपना पहला मानवीय प्रयोग करने की तैयारी शुरू की।डॉक्टरों ने समझा दिया था कि यह दवा शरीर के अंदर की शर्करा को नियंत्रित करेगी,कोशिकाओं तक उतनी ही शर्करा पहुंचेगी जितनी ज़रूरी है,बाकी शर्करा लिवर, फैट में रह जाएगी।
लियोनार्ड थॉम्पसन को 11 जनवरी 1922 को पहली बार इंसुलिन की खुराक दी गई जो एक इतिहास बन गया। संशय और विश्वास के बीच पहली खुराक का कोई खास असर नहीं दिखा ,लेकिन जब अगली खुराक 23 जनवरी 1922 को दी गई तो लियोनार्ड पर सुधार के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगे।
लंबे इंतजार के बाद लोगों के बीच संजीवनी ,इंसुलिन का मानवीय परीक्षण पूर्णतः सफल रहा। लियोनार्ड स्वस्थ हो अस्पताल से निकला।
और उसके बाद से वह इंसुलिन के पोस्टर बॉय बनकर रातों रात दुनिया में चर्चित हो गया।
आज 100 साल हो गए,इंसुलिन के आविष्कार के ,,जिंदगियां खुशहाल हैं और कोई अब मधुमेह से नही डरता।इस समय दुनिया में 42 करोड़ से ज्यादा मरीज है।
1923 में फ्रेडरिक,और मैकलोड को नोबेल प्राइज से सम्मानित किया गया।