पेंशन के लिए खड़ी बूढ़ी दादी को देख
बित बित कर हंसते कर्मचारी।
नहीं जानते उस बूढ़ी की लाचारी
नहीं जानते जिंदगी की रफ्तार में ,
घर के बूढ़े कितने अकेले हो जाते हैं
और पेंशन के सहारे शायद थोड़ा सा सुकून पाते हैं।
पेंशन मानोमरूभूमि मैं मिलता पानी
पेंशन मानो जिंदगी के दरिया की रवानी,
पेंशन मानो जिंदगी की प्यास बुझाती है
और शायद बहू बेटियों की जुबान पर ताला भी लगाती है ।यह पेंशन का दिन दादी की दीवाली
यह पेंशन का दिन लेकर आता खुशियां जाली ,
दादी के अंगूठे से आते हैं जब पैसे
घर की इच्छाओं का मुंह खुलता सुरसा के जैसे।
बड़े छोटों को नहीं जरूरत दादी की दुआओं की
वह सब तो इंतजार में है कड़क पत्ती की हवाओं की
दो रोटी को मोहताज दादी
पेंशन के दम पर रोटी, दवा दारू पाती है ,
नहीं तो उस जैसों की जगह, घर में नहीं कहीं और है
यह वह अच्छी तरह जानती है।
ताउम्र निकाल बेटे बहु पोते पालती दादी
काश की होती समझदार
और उसे भी आता व्यवहार में व्यापार,
तो आज भी पेंशन की यूं बंदरबांट ना करती
स्वरचित सीमा कौशल यमुनानगर हरियाणा