प्रदर्शनी खत्म हुए चार दिन गुजर गये। रोहन चाह कर भी पल्लवी से मिल नहीं पाया। आखिर इंजीनियरिंग की पढाई कहाॅ आसान है। इतने बीच रंजना भी कई बार रोहन के विषय में पल्लवी से पूछ चुकी। पर पल्लवी हर बार रंजना की मजाक बना देती।
” क्या बात है मैडम। प्रदर्शनी में तो बहुत लोग आये थे। आप किन्हें तलाश रही हैं। कोई दिल का मामला तो नहीं है।”
” तू भी बेकार की बात करने लगती है। एक जरूरी काम था। नहीं बताना मत बता।”
” मैं कब बताने से मना कर रही हूं। पर सच्ची बात तो बता।”
अब रंजना सोच नहीं पा रही थी कि पल्लवी को किस तरह बताये।
आज रोहन की एक प्रयोगशाला में प्रयोग इंचार्ज को अचानक अवकाश पर जाना हुआ। पूरे तीन लैक्चर खाली थे। मौका देखकर रोहन पल्लवी के कालेज के लिये निकल लिया। हालांकि उसे लङकियों से बात करने में झिझक नहीं थी पर आज वह घबरा रहा था। कहीं लङकी कुछ गलत न समझ ले।
पल्लवी ने क्लासरूम से रोहन को बाहर घूमते देखा तो चुपचाप बाहर निकल आयी।
” अरे रोहन जी। यहाॅ किसे तलाश रहे हैं।”
” अरे पल्लवी जी। मैं आपको ही तलाश रहा था। एक जरूरी काम था।”
” हाॅ हाॅ बोलिये ।”
रोहन आगे बताने में झिझक रहा था। कैसे पूछे कि उसे पेंटिग बनाने बाली लङकी से मिलना है। पर वह आया तो उसी के लिये है।
” रंजना जी। आपकी वह सहेली है जो पेंटिंग बनाती है, उसके बारे में जानना था। “
” अरे वाह। तो फिर आग तो दोनों तरफ लगने लगी है। “
पल्लवी इतनी जोर से हसी कि बेचारा रोहन सकपका गया।
” डोन्ट माइंड। वह रंजना है। वह भी तुम्हारे बारे में पूछ रही थी। ऐसा करो, उधर कैंटीन में इंतजार करो। मैं उसे लेकर आ रही हूं। “
रोहन इंतजार करने लगा। आज तक उसने कभी किसी लङकी का इस तरह इंतजार नहीं किया था। मन में संकोच और झिझक हो रही थी। आखिर किसी ने पूछ लिया तो वह क्या बतायेगा। फिर वह तो इस कालेज का स्टूडेंट भी नहीं है। खुद के कालेज में कोई परेशानी नहीं है। अगर यहाँ किसी ने कुछ पूछ लिया तो क्या बताऊंगा। पल्लवी भी अभी किस तरह हस रही थी। केवल सपनों का मतलब जानने इस कालेज में लङकी से मिलने आया हूं, इसे कौन मानेगा। फिर बेबजह मजाक होगी। उसका तो कुछ नहीं है। पर बेचारी लङकी यह सब कैसे झेलेगी। कुछ भी हो। यहाॅ रुकना ठीक नहीं है।
बङी मुश्किल से समय निकालकर रोहन रंजना से मिलने आया था पर जब रंजना से मिलने का बक्त आया तो उसकी हिम्मत जबाब दे गयी। वह चुपचाप वापस चला गया।
उधर पल्लवी ने रंजना के कान में कुछ कहा।
” सचमुच। कहाॅ?”
” कैंटीन में।”
” तू चल मेरे साथ।”
” मुझे कबाब में हड्डी नहीं बनना। अपनी बात खुद करो।”
पल्लवी ने रूखा सा उत्तर दे दिया। आखिर रंजना अकेली ही कैंटीन की तरफ चल दी। पर कैंटीन में रोहन नहीं था। फिर वह कहाॅ गया। पल्लवी ज्यादा ही मजाक बनाती है। यदि वह आया होता तो जरूर यहीं मिलता। पल्लवी ने बङा भद्दा मजाक किया है। मुझे यहाँ कैंटीन भेज दिया और खुद मुझे परेशान देखकर आनंद ले रही होगी। वह तो वैसे भी इसे इश्क का मामला कहती हैं। सोच रही होगी कि किस तरह मैं पागलों की तरह लङके को ढूंढ रही हूं। पक्की सहेली होने का अर्थ यह नहीं कि कुछ भी मजाक की जाये। आज मैं उसे अच्छी तरह समझाती हूं।
फिर दो पक्की सहेलियों में पहली बार झगङा हुआ। रंजना यह मानने को तैयार ही नहीं थी कि वास्तव में वह लङका उससे मिलने आया था।
” पल्लवी। मेने तुम्हें अपनी सबसे अच्छी सहेली माना। पर तुम्हारा इस तरह मजाक करना क्या ठीक है। ठीक है कि सहेलियों में बहुत मजाक होते हैं। तुमने मजाक में कहा कि मैं उस लङके को पसंद करने लगी हूं। मेने कुछ नहीं कहा। जानती हो कि मेने बचपन में जो पेटिंग बनाये थे, उसमें जो लङकी है, उसकी शक्ल आज की मुझसे मिल रही है। उस लङके की शक्ल मेरी पेंटिंग के लङके की शक्ल से मिल रही है। यह क्या रहस्य है। बस इसीलिये उस लङके से मिलना था। और तुमने मेरी ऐसी मजाक बना दी। “
पल्लवी आश्चर्य में पङ गयी। आखिर रंजना सच ही कह रही है। तो रोहन भी इसी तरह की बजह से रंजना से मिलने आया था।
” रंजना। उस दिन जिस तरह तुम उसे ढूंढ रही थीं, उसके बाद मेने तुम्हारी बहुत मजाक बनायी। मुझे माफ कर दो। पर यह सच है कि वह तुमसे मिलने आया था। मुझे पता है कि वह कहाॅ मिलेगा। मैं तुम्हें उससे जरूर मिलाऊंगी। मुझे भी यह जानना है कि यह क्या रहस्य है। मेरा विश्वास करो। “
फिर दोनों सहेलियाँ गले लग गयीं। दोनों का भ्रम टूट गया। कुछ रहस्यों के निष्कर्ष इतनी आसानी से नहीं निकल पाते। पर रहस्य के बारे में यदि कुछ जानकारी मिल रही है, कुछ राह दिख रही है तो इसका अर्थ है कि ईश्वर भी चाहते हैं कि वह रहस्य खुले। कई बार वह अज्ञात रहस्य इतना ज्यादा रहस्यमय होता है जो कि कई पूर्व धारणाओं को ध्वस्त कर देता है। काले को श्वेत और श्वेत को काला बना देता है। दोषी को निर्दोष व निर्दोष को दोषी सिद्ध कर देता है। देखना है कि कहीं रंजना और रोहन का रहस्य जब खुलेगा तब कितनी धारणाऐं बदलेंगी, अभी उनके विषय में अधिक नहीं कहा जा सकता है।
क्रमशः अपने भाग में..
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’