ये सूर्य प्रतिदिन 
उम्मीद की किरणें बिखेरता पूरब से उदित होता है,
नयी शुरुआत को समेटे पश्चिम में अस्त होता है,
खुशी और गम के अनेकों भाव लिए प्रतिदिन,
दिन और साँझ के बीच एक दिवस घटित होता है।
दिन का प्रारम्भ उजाले को बिखेरता
इस तरह जैसे मन के अंध तमस में
प्रखर रश्मि के आगमन से ज्योति का
प्रसार जागृत अंतर को कर देता है।
संध्या की बेला जब भी आती
आभास उस सिंदूरी आभा के
साथ उज्जवल भविष्य के
स्वप्नों का भी दे जाती है।
यूँ तो दोनों विपरीत दिशाओं के
मध्य छाया है एक विस्तृत व्योम
जैसे दोनों के बीच व्याप्त है
इक शून्य… या
प्राप्त होता रहता आशाओं
से भरा इक कोना…
स्वरचित
शैली भागवत ‘आस’
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