कहना क्या पुरानी तस्वीर का।
बयां करती बीती तकदीर का।
झुर्रियाए चेहरे भी कभी थे नवयुवा।
चमकती दंत पंक्तियां थी अब पार होती हवा।
जरूरत आ पड़ी चढ़ गया अब चश्मा।
यहीं नैन जो दिखलाते थे कभी करिश्मा।
कभी गुड्डे से थे जो आज बलिष्ठ फौलाद हैं।
पुरानी तस्वीरों में दिखते नन्हें औलाद हैं।
सयानी सुघड़  रमणी थी कभी नन्हीं गुड़िया।
पुरानी चित्रों में दिखती अतीत की मीठी कड़ियां।
तो मुच्छड़ हैं उनके कभी मुलायम थे मुखड़े।
कभी गोदी में खिलते फूल थे जो आज हैं रूखड़े।
जो आज अमीर हैं वो कभी निर्धन भी थे।
तस्वीरें पोल खोलती उन्हें कभी साधन ना थे।
संभाल के रखना इन पुरानी तस्वीरों को।
कद्र मिले इन मोती,माणिक हीरों को।
                 -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण।
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