साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु प्रदत्त विषय

पीठ दिखाना

कविता

पीठ दिखाने वाले कायर होते हैं।

सामना कर नहीं पाते,कवि न शायर होते हैं।

भाग जाते हारकर,यश की हानि होती हैं।

सभी के सामने इनकी बद्जुवानी होती है।

जैसे ये मीडिया भी अपनी पाकिस्तानी होती है।

पीठ दिखाके पाकिस्तान तीन बार भागा है।

हमसे करता रहा नफ़रत ,बड़ा ही वो अभागा है।

बेकारी और भुखमरी लड़कर बुलाई है।

आज भूखें मरने की उसकी, नौबत आई है।

अपने आशियाने में,आग उसने खुद लगाई है ।

जब भी लड़ा हमसे, स्वयं ही मुंह की खाई है।

मानकर के हारी, अब यहां बातें बनाता है।

अपनी कमजोरी को अपनों से छुपाता है।

जिससे जन्म पाया है,उसी को आंख दिखाता है।

आज आतंक का आका जहां में वो कहलाता है।

पापी पाक हरकतों से क्यों न वाज आता है।

लड़ाई लड़कर वो हमसे हमेशा मात खाता है।

प्रीति की रीति न जग में किसी से वह निभाता है।

जंग मैदान में आके पीठ हमको दिखाता है।

कोई परदेश जब जाता , तो पीठ हमको दिखाता है।

कोई जब हार जाता है,पीठ हमको दिखाता है।

बलराम यादव देवरा छतरपुर

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