भाय भाय करती रात
घोर अंधकार का डेरा है,
आगे पग कैसे धरू
भूतों का बसेरा है।।
सुना है वो अपनो की आवाज में
सबको रिझाती है ,
पास जाओ उंसके अगर तो
वह जिंदा नही छोड़ती है।।
बड़ी बड़ी लाल आँखो से वह
सोले बरसाती है,
जान हलक में फस कर रह जाती है।।
पायल की छनछन से उंसके
दिल दहल जाता है
जब वह बन ठन कर रातों को निकलती है।।,
इंसान क्या जानवर भी अपनी जान बचाकर भागते है।
पिचासो की रानी निशिडाक,
जब अपना शिकार करती है।।
रक्तपान से उसकी तब
प्यास जाकर बुझती है।।
सुमेधा शर्व शुक्ला