ना कुछ खोया,तू जाग परिंदे
उमर की लेप लगाने दे…
खड़ा होकर बैठ भी जा ‘क्षणभर’,
आख़िरी वेद तो गाने दे…
ना कुछ खोया……
ना किसीका चिंतन होगा,
ना कभी तू रोऐगा…
बीच श्मशान की घाट में,
कुंठित मन को टोऐगा…
ना कुछ खोया……
सिमट गई अब तेरी आशायें,
किसके लिये मैं रत्न गढ़ूँ…
दिन बिछाये मन होर रहा,
किससे क्या उम्मीद करुँ…
ना कुछ खोया……
पँचतत्व की क्यों आहुति दी,
आख़िरी साँसें भी दान किया…
क्षणिक धरोहर क्यों छोड़ गया,
यादें भी गुमनाम किया…
ना कुछ खोया……
जब देखूँ तश्वीर तेरा मैं,
ना खुद को कभी रोक सकूँ…
ढ़बक उठता नैनों से लोड़ महज,
कैसे मन को बाँध सकूँ…
ना कुछ खोया……
✍️विकास कुमार लाभ
मधुबनी(बिहार)