पापा… तुम्हारे जाने के बाद मैंने काफी कुछ सीखा!
जिन्हें हम अपना समझते थे, उन्होंने ही पीछे खींचा!!
मगर तुम सीखा गए थे हमें, ज़िन्दगी जीने के सलीक़े!
हर ओर से बस आ रहे थे, शब्द लोगो के कटीले!!
हर मुश्किल को हम सबने, बस तेरे नाम से जीता!
पापा… तुम्हारे जाने के बाद मैंने काफ़ी कुछ सीखा!!
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मुझे कई मुक़ाम याद हैं, जहाँ मैं तुम्हे याद करती थी!
की बस तुम एक पल के लिये आ जाओ, बस यही फरियाद करती थी!!
मेरे कदम कभी न डगमगाए, न पीछे हटे!
तेरी बगिया के हम चार फूल, न कभी मुरझाये न कभी टूटे!!
क्योंकि तुमने ही तो हमे अपने पसीने से सींचा!
पापा… तुम्हारे जाने के बाद मैंने काफी कुछ सीखा!!
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मैं एक एक करके कई मुक़ाम पाती गई!
लोगो ने तो बहुत सराहा, लेकिन तुम्हारी कमी खलती गयी!!
मैंने खुद को मजबूत, इतना मज़बूत बना लिया था!
की हर चट्टान भी, मेरे रास्ते से खुद ब खुद हटती गयी!!
क्योंकि, तुमने सारे बुरे सायो को हटा दिया था!
पापा…. तुम्हारे जाने के बाद ज़िन्दगी ने जीना सीखा दिया था!!
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आज तुम्हे गुज़रे यही कोई 6 साल बीत गए!
मगर ऐसा लगता है, की अभी तुम साईकल पर आओगे
और बोलोगे चुममुन खाना लगा दे!!
अच्छा घर, नॉकरी, गाड़ी, हर सुविधा खरीद ली मैंने!
बस बाकी है, तुम्हारा लौट आना!!
तुम्हे अपनी गाड़ी में घुमाना..
तुम्हारे साथ शॉपिंग पर जाना…
हर नई पिक्चर का मज़ा लेना…
हर मौसम के फल खाना…
हर वो मज़े करना जो तुम कभी कर न पाये…
हमे पालने के ख़ातिर, जो तुमने हर कष्ट उठाये..
क्योंकि, ये जीवन तुम्हारे बिना सिर्फ कहने की बात है!
पापा… तुम्हारे बिना ये सब, बस एक शब्द मात्र हैं!
~तुम्हारी चुनमुन (राधिका सोलंकी)