पानी में आग लगाना,
आजकल सबको आता है,
संयम के साथ ये जीवन,
मूर्ख को कहां भाता है।

स्वयं को समझदार समझ,
आजकल दूजे को सिखाता है,
स्वयं में कोई भी कमी,
शायद ही कोई पाता है।

कमी ढूंढने में औरों की,
समय सब निकल जाता है,
मूरख का स्वभाव है बुरा,
आग ही सदा लगाता है।

अच्छे भले काम को भी,
बुरा ही बताया जाता है,
प्रशंसा खलती औरों की,
जलन ही व्यक्ति पाता है।

बंद करो यह आग लगाना,
शीतलता कहां कोई पाता है,
बुरे का बुरा मिलता फल,
हर कोई भोग कर जाता है।

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