पांव भी तभी थिरकते हैं जब
दिल खुशी से ता ता थैया करता है
ये दिल का उत्साह ही तो है जो
पांवों को थिरकने पे विवश करता है
कोई भगवत् भक्ति में थिरकता है
कोई पेट भरने के लिए थिरकता है
कोई कोई तो अपने आका के लिए
बस, एक पांव पर ही थिरक लेता है
पांवों को थिरकने के लिए घुंघरुओं की नहीं
केवल आत्मिक खुशी की दरकार होती है
जब मन में आनंद का सागर उमड़ता है तो
पांवों में भी सरगम की सी झंकार होती है
एक गृहणी के पांव दिन भर थिरकते हैं
पति और बच्चों की एक मुस्कान के लिए
वह अपने सारे शौक भूल के लगी रहती है
अपने छोटे से संसार की सार संभाल के लिए
जीवन का एक ही मंत्र है यारो
खुशी दो और बदले में खुशी लो
अब ये फैसला तुम्हें करना है कि
पांवों को थिरकने दो या समेट लो
हरिशंकर गोयल “हरि”