समाज में रहने वालों की पर्यावरण के प्रति सभी की साझा जिम्मेदारी होती है। जब हम लाभ लेने में कभी पीछे नहीं रहना चाहते तो फिर उसी के प्रति अपने उत्तरदायित्व उठाने में ही क्यों और कैसे पीछे रहते हैं? यह अत्यंत ध्यातव्य और विचारणीय विषय है। सब जानते हैं कि वृक्ष हमारे पर्यावरण सी सर्वोत्तम ईकाई है। केवल उसका रोपण कर तस्वीर खिंचवा लेना पर्याप्त नहीं है ,तो आइए जानते हैं कि क्या और कब करना चाहिए -:
जुलाई माह पौधारोपण/ वृक्षारोपण की दृष्टि से सर्वोत्तम माना जाता है।सभी स्कूलों,कॉलेजों,संस्थाओं और सार्वजनिक स्थानों पर बड़े जोर शोर से वृक्षारोपण होता दिखाई भी देता है पर उनकी बढ़वार मुश्किल से दस प्रतिशत ही मिलती है।कारण स्पष्ट है – सही प्रकार से देखभाल न होना।
अतः पौध लगाने के साथ साथ उनकी समुचित देखभाल परमावश्यक है।
आइए इसी विषय में कुछ ख़ास जानकारी प्राप्त करते हैं।
• कौन सी नई पौध लगाने का समय?
1. जुलाई महीने की शुरुआत में गुलदाउदी की कटिंग लगा सकते हैं। इसकी तीन से चार इंच लंबी कटिंग पानी में भिगोकर विशेष रूप से तैयार की गई मिट्टी में लगाएं।
2. इसी मौसम में डहेलिया, क्रोटन, ड्रेसिना, देशी गुलाब, गार्डेनिया, एक्ज़ोरा आदि की कटिंग भी इसी तरीके से लगा सकते हैं।
3. नर्सरी से लाकर आम, अमरूद, संतरा, नींबू, रात की रानी, हरसिंगार, बेला, चांदनी, मोगरा, जूही, चमेली आदि के पौधे लगाने के लिए यह महीना उपयुक्त समय है।
• किचन गार्डन में क्या करें?
इस समय आप टमाटर, बैंगन, मिर्च, शिमला मिर्च, फूलगोभी के बीज बोकर उनकी नर्सरी तैयार कर सकते हैं। बाद में उन्हें प्रत्यारोपित कर दें। भिंडी भी अभी बोई जा सकती है। यदि फूलगोभी, टमाटर या मिर्च को पहले बो दिया गया हो तो पौध तैयार होने पर इनका रोपण जुलाई में किया जा सकता है।
मिट्टी के पोषण के लिए क्या करें?
मानसून में बहुत अधिक बारिश मिट्टी में से पोषक तत्वों को बहा देती है। इसलिए पौधों को उचित पोषण मिल सके, इसके लिए गोबर की सड़ी खाद, वर्मी कम्पोस्ट जैसी जैविक खाद को गमलों तथा क्यारियों में अच्छे से डालें। एन पी के 5 ग्राम/प्रति लीटर पानी की दर से मिट्टी में सिंचाई करें।
• कैसे सुनिश्चित करें पानी की निकासी?
1. अधिक बारिश के कारण क्यारियों, लॉन व गमलों में पानी ठहर जाने की संभावना रहती है, जो पौधों के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।
2. लॉन : इसे तैयार करते समय ही पानी की निकासी सुनिश्चित कर लेनी चाहिए। लॉन में हल्का सा ढाल एक ओर दिया जाना चाहिए जिससे कि बारिश के समय अतिरिक्त पानी बाहर निकल जाए।
3. क्यारियां : क्यारियाँ तैयार करते समय दो फीट की गहराई तक खुदाई कर मिट्टी को अलग कर लें। फिर दो-तीन इंच की तह पत्थरों या ईंटों के टुकड़ों की बिछा दें। उसके बाद मिट्टी में कम से कम एक तिहाई हिस्सा मोटी रेत और एक तिहाई हिस्सा गोबर की सड़ी हुई खाद मिलाकर भर दें। भराई के बाद फावड़े आदि से मिट्टी को खींचकर एक ओर हल्का ढाल बना लें।
4. गमलों में भी छिद्र खुले रहें, नियमित निराई-गुड़ाई करते रहें तो पानी गमलों में रुकेगा नहीं। यदि लगातार बारिश हो रही है तो गमलों को बारिश के उन दिनों में लिटाकर भी रख सकते हैं।
अगर इस प्रकार से आरोपित पौधों को संरक्षण मिलता रहे तो कोई कारण नहीं कि हम उनसे पूर्णतः लाभान्वित न हो सकें और अपनी धरा के सौंदर्य में बढ़ोत्तरी न कर सकें। इससे पर्यावरण प्रदूषण भी थमेगा तथा प्राकृतिक संतुलन भी आएगा।
धरती पर रहने वाले सभी व्यक्ति द्वारा उठाए गए छोटे- छोटे कदमों के माध्यम से हम बहुत ही आसान तरीके से पर्यावरण को सुरक्षित कर सकते हैं। हमें अपशिष्ट की मात्रा में भी कमी करनी चाहिए तथा अपशिष्ट पदार्थ को वहीं फेंकना चाहिए जहाँ उसका स्थान है। प्लास्टिक बैग का उपयोग नही करना चाहिए तथा कुछ पुराने चीजों को फेंकने के बजाय उनको रिसाइक्लिंग के नए नए तरीके से उनका उपयोग करना चाहिए।
हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम पुराने चीजों को पुनः उपयोग में कैसे ला सकते हैं -: जिन्हें दुबारा चार्ज किया जा सकता है उन बैटरी या अक्षय क्षारीय बैटरी का उपयोग करें, प्रतिदीप्त प्रकाश का निर्माण कर, बारिस के पानी का संरक्षण कर, पानी की अपव्यय कम कर, ऊर्जा संरक्षण कर तथा बिजली की खपत कम करके, हम पर्यावरण के वास्तविकता को बनाए रखने के प्रोजेक्ट की ओर एक कदम बढ़ा सकते है।
पर्यावरण और मनुष्य एक दूसरे के बिना अधूरे हैं, अर्थात पर्यावरण पर ही मनुष्य पूरी तरह से निर्भर है। पर्यावरण के बिना मनुष्य अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है, भले ही आज विज्ञान ने बहुंत तरक्की कर ली हो।
लेकिन प्रकृति में जो हमें उपलब्ध करवाया है, उसकी कोई तुलना नहीं है। इसीलिए भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य को प्रकृति का दोहन करने से बचना चाहिए।
वायु, जल, अग्नि, आकाश, थल ऐसे पांच तत्व है, जिस पर मानव जीवन टिका हुआ है, और यह सब हमें पर्यावरण से ही प्राप्त होते हैं। पर्यावरण ना केवल हमारे स्वास्थ्य का ख्याल रखता है बल्कि एक मां की तरह हमें सुख-शांति भी प्राप्त करता है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि विज्ञान की उन्नत तकनीकी ने मनुष्य के जीवन को बेहद आसान बना दिया है, वहीं इससे ना सिर्फ समय की बचत हुई है बल्कि मनुष्य ने काफी प्रगति भी की है। लेकिन विज्ञान ने कई ऐसी खोज की है जिसका असर हमारे पर्यावरण पर पड़ रहा है, और जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है।
पर्यावरण मनुष्य, पशुओं और अन्य जैविक चीजों को बढ़ाने और विकसित होने में मदद करता है। मनुष्य भी पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण भाग है। पर्यावरण का एक घटक होने के कारण हमें भी पर्यावरण का सदैव संवर्धन करना चाहिए।
पर्यावरण हमारे लिए अनमोल रत्न है। इस पर्यावरण के लिए हम सभी को जागरूक होने की आवश्यकता है। पर्यावरण का सौंदर्य बढ़ाने के लिए हमें साफ-सफाई का भी बहुत ध्यान रखना चाहिए। पर्यावरण और मनुष्य एक दूसरे के बिना अधूरे हैं, अर्थात पर्यावरण पर ही मनुष्य पूरी तरह से निर्भर है। पर्यावरण के बिना मनुष्य अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है, भले ही आज विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली हो फिर भी प्रकृति से जो हमें उपलब्ध है, वह अतुलनीय है। इसीलिए भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य को प्रकृति का दोहन करने से बचना चाहिए।
वायु, जल, अग्नि, आकाश, थल ऐसे पांच तत्व है, जिस पर मानव जीवन टिका हुआ है, और यह सब हमें पर्यावरण से ही प्राप्त होते हैं। पर्यावरण न केवल हमारे स्वास्थ्य का ख्याल रखता है अपितु एक माँ की तरह हमें पालन-पोषण और रक्षण के साथ-साथ सुख-शांति भी प्रदान करता है।
हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की। यह पर्यावरण संतुलन के लिए ही बनाया गया एक उपक्रम है।
इस तरह हमें अपने पर्यावरण को बचाना चाहिए। लोगों को पर्यावरण का महत्व समझाना चाहिए। स्वच्छ पर्यावरण एक स्वस्थ और शांति पूर्ण जीवन जीने के लिए अति आवश्यक घटक है।
लेखिका –
सुषमा श्रीवास्तव
मौलिक स्वलिखित
रुद्रपुर, ऊधम सिंह नगर, उत्तराखंड।