गर्मी पड़ रही, प्यास बढ़ रही,
चलो हम कुछ काम कर आएं,
परिंदे खोज रहे हैं पानी,
थोड़ा सा जल हम उन्हें पिलाएं।
रख कटोरे में दाना और पानी,
आंगन के मुंडेर पर रख आएं,
वो भी जीव हैं हमारी तरह ही,
उनकी आत्मा की प्यास बुझाएं।
थोड़ा सा समय, थोड़ा सा स्नेह,
उनके प्रति भी दिल में जगाएं,
वो भी हिस्सा हैं इस धरती का,
चलो उनके जीवन को बचाएं।
स्वरचित रचना
रंजना लता
समस्तीपुर, बिहार