मै अपने घर से भाग जाना चाहती थी, लेकिन मैं जाती भी तो कहाँ ? 
        ट्रेन के डिब्बे मे  मेरे पास  वाली सीट पर दो महिलाएं बैठी थी।शायद दोनों  सहेलियां  थी।उनकी बातों के कुछ कुछ  अंश मेरे कानों मे पडे तो मन उत्सुक हुआ कि आगे  वो क्या बात बताने वाली है।किसी की यूँ पर्सनल बातें  सुनना सभ्यता  नही है पर हाय !रे नारी मन बैचैनी हो ही जाती है।वह औरत जो कहानी बता रही थी अपनी सहेली को उसका नाम रमा था। रमा आगे कहने लगी ,”क्या बताऊँ मनि जब से शादी हुई है सुख का एक भी सांस  नही लिया। पति को पता नही क्या है जब देखो बात बे बात मारते रहते है।उस दिन तो हद ही हो गयी।मायके से आना जाना तो पहले ही बन्द कर रखा है मेरा ।अपने आप को मेरा और बच्चो  का भगवान  समझते है। एक दिन  तो कह रहे थे तुम और तुम्हारे बच्चे  मेरी दया पर है।अगर मै रोटी ना दू तो सड़कों पर भीख मांगते घुमो। “
इतने मै दूसरे वाली औरत जिसका नाम मनि था उसने सिर हिलाते हुए कहा ,”बडा ही जलील आदमी है भला अपनी बीवी और बच्चो के लिए कोई ऐसे शब्द बोलता है।”अब उन दोनों  ने मुझे भी अपनी आत्म कथा मे शामिल कर लिया ।मै भी मनि की इस बात से सहमत थी। रमा फिर से अपनी कहानी बताने लगी।बोली,”एक बार मुझे और मेरे बच्चो  को मार मार कर घर से निकाल दिया। उस दिन तो मैने भी ठान ली कि मै और मेरे बच्चे  इस जलालत भरी जिंदगी से इस नरक से दूर भाग जाये गे। पर जाये तो जाये कहाँ?यही सोच सोच कर मन भारी हो रहा था मै अनपढ़  औरत बसों का मुझे नही पता कहाँ  जाऊं ।बस स्टैंड  पर दोनों  बच्चो  को लेकर बैठी रही ।मायके किस मुँह से जाऊँ ।तभी हमारे एक परिचित मिल गये जो हमारे मायके की गली मे रहते थे।उनहोंने मुझे पहचान लिया।तुरन्त मेरे मायके खबर कर दी कि बिटिया बस स्टैंड  पर बैठी है। मायके वाले बोले ,”प्लीज  आप रमा को अपने साथ ले आओ।उनका भी मन तरह तरह की बाते सोचकर घबरा रहा था।परिचित मुझे लेकर हमारे गाँव आ गये। पता है मायके की गली मुझे ऐसे लग रही थी जैसे मुझे पुचकार रही हो।घर में घुसी तो माँ  भावज ने गले लगाया आओ  दीदी ,बैठो आप चिंता  क्यो  करते हो ।हम ठीक कर देंगे सब ।”मैने भी सोचा बस अब और अत्याचार सहन नही करूँ गी। नारी हूँ तो इसका मतलब ये नही कि सारा दिन बात बे बात पति के लात घूंसे खाती रहूँ ।मन भारी था आज सारा दिन  जो घटनाक्रम बीता एक एक करके आखों के आगे आ रहा था।माँ का मन बार बार रो रहा था पुचकारते हुए मेरे आंसुओ को पोंछे जा रही थी।बस बेटी सो जा अब तुझे चिंता करने की कोई जरूरत नही हम है ना ।तेरा भाई सब ठीक कर देगा।”मै  भी मन को समझा कर सो गयी।”
      इतने मे शायद कोई स्टेशन आ गया था ।ट्रेन  पटरी पर धीमे धीमे चल रही थी ।रमा का भी पिछली बातें  याद करके गला रुंध गया  था उसने अपने बैग मे से पानी की बोतल निकाली और एक ही सांस मे आधी बोतल खाली कर दी। मन बेचैन हो तो गला भर ही आता है।ट्रेन  ने फिर रफ्तार पकड़ी तो रमा एक बार फिर पिछली यादों मे चली गयी। वह बोली,” मै लेट तो गयी पर नींद तो कोसों दूर थी।दोनो बच्चे  तो दिन भर मेरे साथ धक्के खा कर कब के सो चुके थे।रात को अचानक  से भाई और भाभी  के कमरे से आवाजें  आ रही थी।शायद ये सोच कर भाभी बोलने मे और मुखर हो गयी थी कि मै सो चुकी हूँ ।भाभी की आवाज़ मेरे कानो को साफ साफ सुनाई  दे रही थी।वो भाई  को बोल रही थी।,”सुनो जी ये तीन तीन माँ बेटा आकर मेरी छाती पर बैठ गये है।मै नही सहन करूँ गी ।ऐसा करो इन दोनों बच्चो को इनके पिता के पास छोड़ आओ। जब इनके (बच्चो)पिता ने आप  की बहन को नही रखा तो हम उनकी जायी औलाद को क्यो रखे।रही दीदी की बात दीदी यहाँ रहे गी तो मुझे तो काम मे मदद ही मिले गी। साफ लग रहा था भाभी क्या चाहती है।अगले दिन सुबह होते ही भाई  मेरे पास आया और बोला ,”देख रमा हम तुझे तो रख लेंगे पर ये बच्चे  उसके (रमा के पति) के है इनकी इस घर मे कोई जगह नही है।इनको तो तुझे छोड़ना पड़े गा। माँ  भी भाई  अधीन थी माँ भी हां  मे हां मिलाने लगी।मेरा मन अन्दर से तडप उठा मै अपने बच्चो  से कैसे अलग हो जाऊँ । मै सोचने लगी इनहोने क्या कसूर किया है।इनका बाप तो इनको भी मारता है।इन मासूम कोंपलो को उस कसाई के हाथ कैसे सौंप दू ।मैने माँ को बस इतना ही कहा कि माँ  जैसे रात को आप का मन दुख रहा था मेरी हालत देख कर तो मै भी तो एक माँ हूँ मै कैसे इन नन्ही जानो को अपने से अलग कर दू ।और बस हाथ जोड़कर यही कहाँ कि मुझे वापस ससुराल वाली बस मे बैठा दो।भाई ने बस मे बैठा दिया और वापस चल दी मै उसी नरक मे सिर्फ अपने बच्चो  की खातिर।”इतना कह कर रमा अपनी सहेली के कंधे पर सिर रख कर फूट फूट कर रो पडी।और मै भी सोचती रह गयी औरत का कौन सा घर अपना होता है शायद कोई सा भी नही अचानक से कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी
   
बड़ी  गजब की रचना हूँ  मै, तेरी भगवान 
बेटी बन कर भी परायी  हूँ और बहू  बन कर भी परायी ।
रचनाकार:- मोनिका गर्ग
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *