पथ में पत्थर बहुत मिलेंगे
विघ्न रास्ता हर पल रोकेंगे
पत्थरों से बचकर चलना है
इन्हीं पत्थरों से पुल बनाना है
यहां सब रोड़े अटकाने बैठे हैं
पराया माल सटकाने बैठे हैं
कोई किसी का मददगार नहीं
स्वार्थ का द्वार खटखटाने बैठे हैं
खुद को पथ का पत्थर ना बना
हर कोई दे ठोकर ऐसा ना बना
जो ठोकर मारे उसे लहुलुहान कर
खुद को निर्बल, निरीह ना बना
खुद को किस्मत के हवाले मत कर
उठ, खड़ा हो, कुछ परिश्रम कर
पथ के पत्थरों से इमारत बना ले
आगे बढ़, एक नई शुरूआत कर
हरिशंकर गोयल “हरि”