वह दिन दूर नहीं जब आम जनता पत्रकारों को पकड़ पकड़ कर पूछेगी। 
   झूठी खबरें क्यों दिखाते हो?
खबर में कितनी सच्चाई है?
आजकल पत्रकारिता ऐसी ही हो गई है।
मीडिया लिबरल  की अब पोल भी खुल रही है।
छ्द्म माहौल बनाने में हमेशा मीडिया आगे रहता है। 
इस तरह खबरों को दिखाते हैं कि सच्चाई उसमें होती ही नहीं है।
किसी हिंदू ने  कोई गलत काम कर दिया तो उस पर बड़े-बड़े लेख,  हेड लाइन मुख्य पृष्ठ पर आएंगी।
और किसी हिंदू के साथ गलत काम हो गया तो उसे मीडिया कवरेज नहीं देगा।
हर अपराधिक समाचार को जातीय रंग देता है टाइम्स ऑफ इंडिया 
अभी हाल ही में राजस्थान जालौर के एक मंदिर में प्रवेश ना कर देने की एक फेक न्यूज़ छपी
और शिकायत के आधार पर राजस्थान सरकार ने मंदिर के पुजारी को गिरफ्तार भी कर लिया।
जब जांच में बाद में पता चलता है कि दंपति ने मंदिर में पूजा पाठ कर ली थी ,लेकिन वे गर्भ गृह में नारियल जलाने जा रहे थे, तो पुजारी ने उन्हें बाहर जाकर नारियल जलाने को कहा था।
और सत्य सामने आने के बाद भी टाइम्स ऑफ इंडिया या किसी अन्य समाचार समूह ने अपने पाठकों को यह बताने की आवश्यकता नहीं समझी।
यह इनका दोगलापन खटिया पर बहुत ही खराब है। पहले भी जमाना होता था। वर्तनी में भी गलती हो जाती थी या कोई खबर गलत छपती थी, तो अगले दिन अखबार में एक कॉलम में लिखा आता था कि क्षमा प्रार्थी हैं कल हमने इस खबर को ऐसे छाप दिया या इस शब्द को ऐसे लिख दिया। अपने पाठकों के साथ अब वो रिश्ता नहीं रखा, वह विश्वास नहीं बनाए रखा समाचार पत्रों ने।
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