” पूरे दिन मैं घर और पार्लर के काम में लगी रहती हूं, मैंने कोई कमी नहीं रखी और आज जब मैं बिमार हूं तो तुम कहते हो सोई क्यों हो ?”

दरअसल नीमा की शादी जिस घर में हुई थी वहां सभी रूढ़ीवादी परम्पराओं को मानते थे… ” बहू को सिर्फ घर के काम काज में ही ध्यान देना चाहिए। ” नीमा पढ़ी लिखी, संस्कारी लड़की थी। वह भली-भांति जानती थी कि उसे अपने स्वाभिमान को भी जिन्दा रखना है और मर्यादा का भी ध्यान रखना होगा ।

घर पर पार्लर के लिए उसने सबको मना भी लिया । सबकुछ वह खुद कर लेती थी.. घर का सारा काम, दोनों बच्चों की देखभाल और संजय ( नीमा का पति ) भी तो बच्चों से कम नहीं था, सास ससुर की भी सब तरह से देखभाल करती थी उस पर फिर पार्लर !

एक साल तो निकल गया पर अब ननद आई, बस फिर तो जैसे शामत आई। लगी रहती थी सबको प्रसन्न करने में पर कहते हैं ना कि आप एक साथ सबको खुश नहीं रख सकते ।

शुरुआत संजय से ही हुई दुनिया भर का गुस्सा वह संजय
पर निकालने लगी। करती भी क्या माता पिता के संस्कार बड़ों के सामने मूंह खोलने नहीं दे रहे थे और संजय के सिवाय उस घर में उसे समझने वाला भी कोई न था।

अब उसके शरीर में कमजोरी दिख रही थी पर फिर भी कौन परवाह करता है सबका बस यही कहना था , ” पार्लर बन्द करदे … ” कोई भी यह नहीं कह रहा था कि ज़रा आराम कर ले। अब बदन दर्द करता था और वह मां को याद कर रो पड़ती थी ।

फिर वह दिन आना ही था, आज ऐसी दशा हो गई थी कि वह बिस्तर से हिल भी नहीं पा रही थी। संजय उसे कबसे चाय रखने के लिए उठा रहा था पर वह भी उसकी हालत समझ न सका । आज वह उसके सोए रहने पर सवाल खड़े करता है।

नीमा पहले ही दर्द से परेशान थी, फिर भी संजय की नाराज़गी को देखते हुए उठने की कोशिश करती है परंतु कराह उठती है। वह खिसक भी नहीं पाती। ऐसा लगता है उसकी रीढ़ की हड्डी में कोई तकलीफ़ हो गई है। संजय को दया आती है वह सहारा देने की कोशिश करता है मगर विफल होता है।

तब तक संगीता जी नीमा के कमरे में उसकी आवाज़ सुन कर आती है ,
” अरे बहू अभी तक उठी नहीं, क्या हुआ कुछ तकलीफ़ है क्या ? “

संजय उन्हें उत्तर देता है ,
“मां नीमा उठ नहीं पा रही, पता नहीं क्या हुआ है इसे ! “

” मैं तो पहले से कहती थी पार्लर वार्लर मत करवा पर तुम दोनों सुनते कहां हो । “

आज संजय चुप न रह सका ,
” मां क्या सच में इसकी वजह सिर्फ पार्लर है ? हमारा कोई दोष नहीं ? सारा दिन बिचारी काम करती रहती है, क्या बुरा है अगर वह अपने पैरों पर खड़ी है या उसका मन बहल जाता है? मैंने खुद ने कई बार देखा है कस्टमर को देखते ही आप बार बार उसे किसी न किसी काम के बहाने बुला लेती हो फिर भी बिचारी कस्टमर के साथ साथ आपका भी सम्मान बनाए रखती है। क्या दोष है उसका अगर वह अपनी शादी शुदा जिंदगी को अपनी प्रोफेशनल लाइफ के साथ बैलेंस करके चलना चाहती है तो ? क्या घर की सारी जिम्मेदारी केवल उसके सिर मढ़कर हमें खुशी मिल जाएगी ? मां वो भी एक मां है उसके बच्चों के लिए वो उतनी ही ज़रूरी है जितनी कि आप मेरे लिए । “

संजय की बात को सुन संगीता जी को अपनी भूल का अहसास होना निश्चित था। क्योंकि सत्य तो हर हाल में सत्य होता है।

कईबार चुप रहने से भी बात बन जाती है लेकिन जहां जरूरी है वहां तो बोलना ही पड़ेगा और कौन जाने हालात सुधर जाएं!

कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद ।

प्रिय पाठकों ऐसी और कहानियां यदि आप पढ़ना पसंद करते हैं तो मुझसे जुड़े रहने के लिए मुझे फोलो अवश्य करें।

आपके सुझावों को और आपके प्यार को मैं अपने लिए बहुत ही अनमोल मानती हूं अतः कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें आप क्या मानते हैं इस विषय को लेकर ।

आपकी अपनी

(deep)

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *