” पूजा यह बच्चा तेरा है राजेश का इस पर कोई अधिकार नहीं। इसे रखना ना रखना ये निर्णय सिर्फ तुझे ही लेना है । “

अपनी जिंदगी का इतना बड़ा फैसला वह खुद नहीं ले सकती थी ऐसा पूजा का मानना था। मां ने उसे समझाया ,
” जब तक तुम्हारी संतान होगी तब तक तुम दोनो का तलाक हो चुका होगा। फिर तुम बच्चे को संभाल सकोगी अकेले ? और फिर अगर कल को तुझे दूसरी शादी करनी हो तो क्या सामने वाला पक्ष तुम्हारी संतान को स्वीकार करेगा ? सब पहलू अच्छे से सोच लेना बेटा। जिंदगी तुझे ही जीनी है और कैसे, ये तुझे ही देखना होगा । “

” मां जो इंसान मुझे मेरी तकलीफ़ और खुशी के साथ स्वीकार ना करे ऐसे इंसान से शादी करके जीवन बर्बाद करने से अच्छा है मैं राजेश के साथ ही निर्वाह कर लूं। ” पूजा इतना कह कर रोने लगी ।

” बेटी मैंने तुझे रोने के लिए नहीं पढ़ाया था। एक जमाना था जब बेटियों को पढ़ाया नहीं जाता था और तब माता पिता अफसोस करते थे कि काश हमने बेटी को पढ़ाया होता तो आज हमारी बेटी के भाग्य में आंसू नहीं आते। अगर तुम पढ़ी लिखी होकर ऐसी बचकाना बातें करोगी तो क्या अर्थ रहा तुम्हारी पढ़ाई का । किस .. राजेश के पास जाने की बात कर रही हो, जिस ने तुमसे प्यार के झूठे वादे करके तुमसे शादी की, या वो जो शराब के नशे में चूर हो कर तुम्हें मारता है और तुम्हारी महेनत की कमाई छीन जाता है? किस के भरोसे जिंदगी निकालोगी ! “

” मां मैं क्या…. करूं… “

” पहले रोना बंद कर और फिर एक पढ़ी लिखी समझदार लड़की को क्या करना चाहिए यह तू ही बता । “

पूजा धिरज धरने की कोशिश करती है आंखों से आंसू पोंछती है और भिगी पलकों से मां की तरफ देखती है। मां का दृढ चेहरा और फीके रंग की साड़ी देख उसे उसके बचपन के दिन याद आ जाते हैं कि मां ने कैसे पिता के गुज़र जाने के बाद सिलाई कर कर के एक एक पाई जोड़ कर पूजा को पढ़ाया था। आज उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह मां को यह आश्वासन दे कि वह डगमगाएगी नहीं। कल की चिंता में या बीते दिनों का रोना लेकर पूरी जिंदगी काटना बेवकूफी होगी ।

” बता बेटा तेरे मन में क्या चल रहा है तू अपनी मां से सब कह सकती है। तेरा जो भी फैसला होगा मैं तेरा साथ दूंगी मुझे तुझ पर और मेरी परवरिश पर भरोसा है बेटा । “

” मां … ( आह भरते हुए) आप सही है पर मैं मेरा बच्चा चाहती हूं। मैं भी आपकी ही तरह उसे बहुत प्यार दूंगी उसकी सारी जिम्मेदारी लूंगी । “

” और शादी बेटा … ज़रूरी नहीं जो एक बार हुआ वह दूसरी बार भी हो । “

” मां अभी तो मैं सिर्फ हमारे बारे में सोच रही हूं बाद की बाद में देखी जाएगी। आप बिल्कुल चिंता न करें अब मैं आपको कभी भी दुखी नहीं होने दूंगी आपको आपकी बेटी को पढ़ाने का गर्व रहेगा मां । “

” मेरी अच्छी बेटी मुझे तुझसे यही उम्मीद थी। जिंदगी में उतार चढाव आने से जिंदगी खराब नहीं हो जाती । ” कहकर मां ने पुजा को गले लगा लिया ।

दोस्तों कहानी का उद्देश्य यही है कि हम पढ़ लिख लेने के बावजूद समाज के डर से या संस्कारों के नाम पर बहुत कुछ न सहने योग्य भी सह लेते हैं, ये तो ठीक नहीं। अतः न सहने योग्य बात का विरोध करना मुझे सही लगता है। आप क्या मानते हैं, अपनी राय अवश्य रखिएगा ।
धन्यवाद 🙏 जी

आपकी अपनी

(deep)

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

<p><img class="aligncenter wp-image-5046" src="https://rashmirathi.in/wp-content/uploads/2024/04/20240407_145205-150x150.png" alt="" width="107" height="107" /></p>