हम ढूढने भी गए तो न मिले,
वो बिखरे हुए गुल न खिले।
 वही गलियां वही चौबारे मिले,
थोड़ा बदले बदले  पगडंडियों के किनारे मिले,
बहुत की कोशिशें पर वो साथी बिछड़े न मिले।
 थी बहुत रौनकें आज भी उस जगह,
थे हंसी अख़्स शोख जवां थे बहुत कह कहे,
 पर न हम जैसे मासूम दिखे आप जैसे सरफिरे न मिले।
गर्मियों में छाँव देते न वो  पीपल रहे,
सर्दियों में न वो गुनगुनी धूप के पल रहे,
वेपनाह फुरसतों के न वो जमाने मिले।
 वो जोश वो जवानी सब है मगर,
जिम्मेदारी ने थाम ली हर डगर,
मुस्कुराहटें होंठो में रह गयीं न वो खिलखिलाने मिले।
सब थे ज्यों के त्यों हम बदले या बदली दुनियां,
बहुत बड़े सजे दरो दीवार पत्थर संगेमरमर से,
न वो छोटी डियोड़ी के घर न वो बड़े दिल के बन्दे मिले।
मिले इस सफर में बहुत पढ़े लिखे,
सजे सबरे, चाँद छूने की बात करते हुए ,
पर उनकी बातों में न जमीनी भरोसे मिले।
 थे रंगीन मंहगे परिधान,
किसी को न चाहिए था जीवन मे व्यवधान,
 दिल बहलाने के तरीके मिले दिल मे उतरने के नुख्से न वो पुराने मिले।
हर तरफ होड़ हावी हुई इस कदर,
छोटे बच्चे माँ बाप के अरमानों के बोझ डाले मिले,
नए कीमती खिलौने मिले पर खेलने बाले न बच्चे मिले।
 सब मिल गया जो कभी मांगा भी न,
 वो भी मिल गया जो सोचा न,
अफसोश खो गए दिन न सुहाने मिले।
 अन्जू दीक्षित,
बदायूँ,उत्तर प्रदेश
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