कौन करता है निस्वार्थ सेवा।
सब चाहे बदले में ढ़ेर सा मेवा।
अगर करने लग जाए जन सेवा।
कोई ना रहे भूखा सब करे कलेवा।
मानवता,ईमान का बहने लगे रेवा।
नर,नर ना रहकर हो जाए देवा।
पर करता कौन है निस्वार्थ सेवा।
सेवा के नाम पर सौदा कर लेवा।
धर्म,दया की नाव को किसने खेवा।
काश कर पाए कोई निस्वार्थ सेवा।
             -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण
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