हे नारी,
तेरे रूप अनेक,
कभी बेटी, कभी बहन
कभी माँ, कभी बहु,
सब किरदारों में अनुपम स्वरुप,
बेटी बन मात पिता का नाम रोशन क़र जाये 
बहन बन अनुज को राखी का बंधन निभाए,
पत्नी बन सात जन्म के वादे निभाने का सामर्थ्य रख पाए
एक जान होकर,
किरदार अनेक निभाने का अटूट साहस
ना जाने तुझमें कहाँ से आये?
क़र देती है रोशन तुम्हारे दो जहान को,
नारी, दोनों घर का आँगन महका जाये।
कभी आँखों में ममता का सागर उमड़े 
तो कभी चंद्र छटा पर निश्छल सी मुस्कान बिखरे।
कभी ग़म का सागर भी, पलक झपकते सुलझाए
कभी मीठे बोल की आस में, निश्छल ममता रस लुटाये
नारी, तेरे अनुपम रूप का सम्पूर्ण वर्णन
आखिर कैसे मुमकिन हो पाए,
आखिर कौन है यहां तेरे जैसा
जो जान की बाज़ी लगा संतान को जन्म दे पाए।
निकेता पाहुजा
रुद्रपुर उत्तराखंड
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