नारी तू सम्मान है,घर-घर का अभिमान है।
1- कभी दुर्गा बन,कभी काली बन, कभी अहिल्या सी नारी बन,
सबको त्राण दिलाती तू,भारत की तो प्राण है तू। नारी तू सम्मान है।
2- तेरे आँचल का पोषण पाकर,पोरों का संस्पर्श पाकर,
शिशु – बाल – युवा बन खड़ा हुआ।
देश के हित में अड़ा हुआ,
अपना मान घटाकर भी तू औरों का मान बढ़ाती है। नारी तू सम्मान है।
3- ममता की थाती है तू पर ममता की भूखी है,
त्याग, तपस्या, वत्सलता की तू ही तो इक मूरत है।
अन्याय का जवाब देने की क्षमता भी तुझमें समाहित है,बस बिगुल बजाने की देरी है। नारी तू सम्मान है।
4- जीवन के हर मोड़ पर तेरा कौशल ऐसा है,
जैसे जीवन जीने की तू कोई अभियन्ता है।
घर-परिवार की हरदम ज़रूरत है। नारी तू सम्मान है।
5- मुश्किलों को चुटकियों में हल करने की आन तुझे,
आगत-विगत सम्हाले तू ही, बिगड़ा भी बनाती तू,
अरे! घर के मुखिया की शान है तू। नारी तू सम्मान है।
रचयिता –
सुषमा श्रीवास्तव
मौलिक रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित
उत्तराखंड।