शीर्षक:- “नारी तेरे रूप अनेक”
नारी तुम विश्वास हो,
श्रद्धा हो अरदास हो,
तेरे दूध से फलती-फूलती सृष्टि,
तुम धरती आकाश हो।
नारी तुम विश्वास हो।
वैभवता की देवी हो तुम,
ज्ञान का भंडार हो,
देवों की माता तुम्हीं,
तुम धरती आकाश हो।
नारी तुम विश्वास हो।
तुम्हीं स्रटा, तुम्हीं कर्ता,
तुम पापों का संहार हो,
सृष्टि का आगाज तुम्हीं से,
तुम धरती आकाश हो।
नारी तुम विश्वास हो।
कोमलता की मूरत हो तुम,
अंतरिक्ष को भी भेदनेवाली हो,
हर क्षेत्र में वर्चस्वी तुम्हीं,
तुम धरती आकाश हो।
नारी तुम विश्वास हो।
पहचानो तुम रूप को अपने,
तुम ईश्वर का वरदान हो,
उमा, शारदा, शक्ति तुम्हीं,
तुम धरती आकाश हो।
नारी तुम विश्वास हो।
स्वरचित
रंजना लता
समस्तीपुर, बिहार
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