तर्ज आंख से छलका आंसू …..
दोहा
अपनी कमजोरी सदा,
लेते लोग छूपाय।
बना बहाने लेत हैं,
झूठ न सच बन पाय।
नांच न जाने आंगन टेढ़ा कहते ,सब लोग हैं।
काम नहीं जब आता, तो करते बहाने लोग हैं।
1 अपनी कमजोरी को लोग छुपाते।
कुछ लिख न पाते,पर कवि कहाते।
औरों की रचना को अपनी बताते।
खुद महाकवि..बन बैठे दुनिया में ऐसे लोग हैं 0…………
2 इक लोमड़ी ,कोशिश कर थक जाती।
अंगूर है खट्टे मैं इस लिए न खाती।
ऐसा कहकर वो निज कमी छुपाती।
जीवन में ऐसे लोगों से भी ,जुड़ जाता संयोग है 0……
3 नेता जी रामायण पर बोले।
मर गये राम जी जनता से बोले।
जब चले टमाटर तों भेद ये खोले।
ये काम विपक्ष का सारा हमसे जलते वे लोग हैं।0…..
नांच न जाने आंगन टेढ़ा कहते तब लोग हैं
बलराम यादव देवरा छतरपुर