नसीहत देते हैं तुमको, तुम्हें तालीम यह देकर।
बहक मत जाना नेकी से, किसी उलफत में फंसकर।।
नसीहत देते हैं तुमको————-।।
मनाते हैं कुछ होली, बस्ती मुफ़लिस की जलाकर।
कफ़न नसीब नहीं होता उनको, खुद अपने मरने पर।।
नसीहत देते हैं तुमको————-।।
किसी का शौक होता है, किसी की शमा बुझाने का।
तु ऐसा शौक मत करना, दर्दे – आवाम देखकर।।
नसीहत देते हैं तुमको————।।
किसी को चैन मिलता है, जुल्म बेगुनाह पे करने से।
खुदा को वो तरसते हैं, अपनी हस्ती के मिटने पर।।
नसीहत देते हैं तुमको————-।।
उसी का नाम होता है , वतन के काम जो आये।
तुम्हें भी याद करेंगे , वतन के नाम मरने पर।।
नसीहत देते हैं तुमको————–।।
तुम्हें पहना रही है ताज, तेरे इस मुल्क की आवाम।
चमन बर्बाद मत करना, वजीरे- आज़म तु बनकर।।
नसीहत देते हैं तुमको————–।।
रचनाकार एवं लेखक- 
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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