पाना और खोना ये सब
भाग्य,नसीब का खेल है
सिर्फ भाग्य भरोसे न रहना
ये ही अपना उसूल है।
नसीब में जो लिखा हो
मिलना तो वही होता है
भाग्यलिखे को पाने को
कर्मधारा में गोता लगाना है।
नसीब का खेल भी बड़ा
अजब,गजब, निराला है
इसने राजा को रंक और
रंक को राजा बना डाला है।
पर फिर जीवन में कर्म
भाग्य के आड़े आता है
न करे जो कर्मानुसार तो
भाग्य भी आधा रह जाता है।
करते हैं जो कर्मानुसार तो
भाग्य भी दोगुना हो जाता है
राजा को भी महाराजा बना जाता है
ऐसे नसीब अपना खेल दिखाता है।
भाग्य के इस खेल में
कर्म का साथ कभी न छोड़ो
करो अपना कर्म भरपूर
सबकुछ भाग्य पर छोड़ो।।
आशा झा सखी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)