विनायक एक बहुत ही होनहार और‌ प्रतिभाशाली युवा था। दसवीं में उसके बहुत ही बढ़िया अंक आए थे। डॉक्टर बनना उसका सपना था। इसलिए उसने ग्यारवीं में मेडिकल के क्षेत्र का चुनाव किया। वह पूरी लगन और मेहनत से पढ़ाई कर रहा था। 
मध्यमवर्गीय परिवार में पला बढ़ा था। वह जानता था कि यदि उसे आगे की पढ़ाई करनी है तो स्कॉलरशिप की बहुत आवश्यकता पड़ेगी। इसलिए उसके लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहा था। उसके परिवार में उसके अलावा उसके तीन और भाई-बहन थे। सबके पालन पोषण की ज़िम्मेदारी अकेले उसके पिता पर थी। 
पर एक दिन एक अनहोनी घटना घटी जिसने उसके सारे सपनों पर पानी फेर दिया। उसके पिता को बहुत ज़बरदस्त दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया से रुखसत हो गये। परिवार पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। अब सबका पालन-पोषण कैसे होगा? यह सबसे बड़ा सवाल था। 
विनायक के ना तो नानके और ना ही दादके इतने सक्षम थे कि वो सबका पालन पोषण कर सकते। अंततः उसकी मां जो अभी केवल पैंतिस साल की उम्र की ही थी, ने अपने माता-पिता की बात मान ली और अपने बच्चों की भलाई और उज्जवल भविष्य के लिए एक कदम उठाया। पर विनायक को उनका यह फैसला मंजूर नहीं था।
“ऐसे कैसे मैं किसी और को अपना पिता बना सकता हूं?” वह अपनी मां सुषमा से बोला।
“बेटा, मेरे सिर पर तुम चारों की ज़िम्मेदारी है। सबके भविष्य की चिंता मुझे सताती है। इसलिए यह कदम तो मुझे उठाना ही पड़ेगा।” सुषमा ने रोते हुए कहा। 
आखिरकार उसकी मां ने अपने माता-पिता के बताए व्यक्ति मोहनलाल से शादी कर ली। मोहनलाल धनवान था। पर चूंकी वह अपाहिज था इसलिए उसकी शादी नहीं हो रही थी। 
सुषमा अपने सभी बच्चों के साथ अपने नये घर में चली गई। उस घर में सबको बहुत बढ़िया सुख-सुविधाएं थीं। मोहनलाल ने तीनों छोटे बच्चों को सरकारी स्कूल से निकाल प्राइवेट स्कूल में दाखिला दिलाया। उसने विनायक से भी आग्रह किया कि वह भी प्राइवेट स्कूल में पढ़े। पर विनायक नहीं माना। वह उसका कोई एहसान नहीं लेना चाहता था। 
दिन बीतते गए। विनायक अपनी मां से दूर होने लगा। ना जाने क्यों उसके मन में एक बात घर कर गई कि उसकी मां को अपने बच्चों के भविष्य के कारण एक अपाहिज से शादी कर अपनी ज़िंदगी से समझौता करना पड़ा। 
यह बात अब उसे परेशान करने लगी। अपनी मां को उस व्यक्ति के साथ देखकर वो तिलमिला उठता था। अब वो अक्सर घर देर से आता था। यूं ही सड़कों पर भटकता रहता था। एक दिन उसके स्कूल के कुछ आवारा लड़के उसे मार्केट के बाहर मिले। अमूमन विनायक ने कभी ऐसे दोस्तों से कभी दोस्ती नहीं की थी। पर आज उसका मन परेशान था। और वह किसी से अपने मन की बात कहना चाहता था। इसलिए उन दोस्तों के ज़िद्द करने पर वो उनके साथ चल‌ पड़ा।
वो लड़के उसे एक देसी पब में ले आए। विनायक को वहां का माहौल बहुत अजीब लगा।
“ये तुम मुझे कहां ले आए?” विनायक ने कहा।
“तेरे हर ग़म का, हर दर्द का इलाज है यहां।” उनमें से एक लड़का रोहित बोला।
दोस्तों की ज़िद्द पर विनायक ने अपने ग़म को भुलाने के लिए उस ज़हर‌ को मुंह से लगा ही लिया। कुछ समय बाद विनायक ने नशे में चूर हो अपनी सारी तकलीफ़ बयान कर दी। उसकी आंखों में आंसू थे कि उसकी मां को उसकी और उसके भाई बहन के उज्जवल भविष्य के चलते ये कुर्बानी देनी पड़ी।
तभी उनमें से एक लड़का हेमंत हंसते हुए बोला,” तू बहुत भोला है दोस्त! तुझे क्या लगता है कि तेरी मां ने ऐसा तुम्हारे लिए किया है। ना…. बिल्कुल नहीं।” 
नशे में धुत विनायक ने उससे पूछा,”फिर क्यों… किया है?” 
हेमंत भी नशे में बोला,”भाई, तुम लोग तो सिर्फ एक ज़रिया हो, हो सकता है ये एशो-आराम तेरी मां को भी चाहिए हो। वरना, वो खुद कुछ भी मेहनत मज़दूरी करके तुम लोगों को पाल ही लेती।” 
नशे में धुत विनायक को अपने दोस्त की बात सही लगी। 
वह घर पहुंचा तो बहुत बड़ा हंगामा खड़ा हो गया जब उसकी मां ने उसे ऐसी हालत में देखा। पर विनायक आज किसी की नहीं सुनने वाला था। उसने जब अपनी मां को अपशब्द बोलने शुरू किए तो मोहनलाल ने बीच में आ विनायक को रोकने चाहा। पर विनायक ने उसे खरी-खोटी सुनाई और अपने कमरे में चला गया। 
अब तो यह रोज़ का दृश्य बन गया। विनायक के दोस्तों ने मोहनलाल और उसकी मां सुषमा के प्रति विनायक के कान ऐसे भरे कि विनायक के मन में उन दोनों के प्रति ज़हर घुल चुका था। 
विनायक अब बदल गया था। उसे अब केवल शराब चाहिए थी और इसके लिए वह कुछ भी कर सकता था। डॉक्टर बनने का सपना अब पीछे छूट चुका था। वो अब स्कूल भी नहीं जाता था। अपने उन आवारा दोस्तों के साथ ताश खेलना, सट्टा लगाना, लड़कियां छेड़ना, यही उसकी दिनचर्या थी। 
सट्टेबाजी और जुए की लत की वजह से विनायक और‌ उसके दोस्त बहुत कर्ज में आ चुके थे। अब यदि उन्होंने कर्ज़ा नहीं उतारा तो पप्पू भाई उन्हें जान से मार देगा।
“अब क्या करें? कहां से पैसे लाएं?” हेमंत बोला।
“ये विनायक लाएगा अब पैसे।” विशाल बोला।
“अरे! मैं कहां से लाऊंगा?” विनायक ने हैरानी से पूछा।
“देख भाई, सीधी सी बात है। हमने तुझे अपने पैसों से शराब पिलाई, जुआ खिलाया। मज़े भी कराए। अब तू कह रहा है कि तू कहां से पैसे लाएगा? अब दोस्ती का फ़र्ज़ निभाने की बारी तेरी है।” रोहित बोला।
“पर इतना पैसा मेरे पास कहां है? और तुम मज़े करते थे तो वो इसलिए कि मैं जुए में अपना दिमाग लगाकर जीतता था। उन पैसों से तुम ऐश करते थे।” विनायक ने चीखते हुए कहा। 
हेमंत को भी गुस्सा आ गया। उसने ताना मारते हुए कहा,”बिजली के साथ रंगरलियां मनाते हुए ये ख्याल नहीं आता था तुझे। मेरी आइटम भा गई थी तुझे। खुशी से उसे तुझे सौंप दिया। दोस्ती की खातिर किया ऐसा मैंने भाई।” 
“अब तेरी बारी है। या तो दोस्ती का क़र्ज़ चुका था फिर हमारे गेंग से बाहर हो जा।” रोहित बोला।
“नहीं भाई, बाहर‌ मत करो। तुम लोग के सिवा और कौन है मेरा? क्या करुं मैं? बताओ।” विनायक गिड़गिड़ाने लगा।
“तेरे उस…. मुंहबोले बाप के पास इतना पैसा है। चुरा ले थोड़ा सा।” हेमंत ने अपना पासा फैंकते हुए कहा।
पहले तो विनायक इस बात के लिए सहमत नहीं हुआ। फिर सबके समझाने पर मान गया। अपने माता-पिता के लिए अब उसके मन में कोई इज़्ज़त और प्यार तो था ही नहीं। इसलिए इस काम को अंजाम देने में उसे डर भी नहीं था। 
उस रात उसने पहले थोड़ी शराब पी फिर घर की तरफ निकल पड़ा। उसे जल्दी घर देख सुषमा थोड़ी हैरान हुई पर कुछ बोली नहीं। सुषमा ने उसे रोका और बोला,”बेटा, क्यों अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर रहा है। अभी भी वक़्त है संभल जा। और फिर से नई शुरुआत कर।”
“संभल तो आप जाओ। अपने आराम के लिए हमारी बलि चढ़ा दी। मेरे तीनों भाई बहन तो छोटे हैं, उन्हें तो एहसास भी नहीं कि आप कितनी स्वार्थी हो। उन्हें तो आपने और आपके पति ने प्राइवेट स्कूल और एशो-आराम की लोलीपॉप चुसा रखी है। पर ये जाल मुझ पर नहीं चलेगा। हटो मेरे रास्ते से।” विनायक ने अपने कटु शब्दों के बाणों से सुषमा को घायल कर दिया और अपने कमरे में चला गया।
रात को उसके दोस्त प्लॉन के हिसाब से उसके घर के नीचे आ गये। और हेमंत उसको हिम्मत देने उसके कमरे में पहुंच गया। 
“यार! हेमंत अपने ही घर में चोरी करना सही नहीं है। हिम्मत नहीं हो रही।” विनायक ने कहा। 
“तेरा घर नहीं है। तेरे सौतेले बाप का घर है। और रही बात हिम्मत की तो ये ले दो घूंट और लगा ले,‌ अपने आप हिम्मत आ जाएगी।” हेमंत ने उसे बोतल थमाते हुए कहा। विनायक लगभग आधी बोतल गटक गया। अब उसपर चोरी करने का जुनून सवार हो गया था।‌
वह दोनों धीरे-धीरे दबे पांव मोहनलाल और सुषमा के कमरे में दाखिल हुए और मास्टर‌चाबी से लॉकर का ताला खोल दिया। सारा पैसा बैग में डाल ही रहे थे कि अचानक मोहनलाल उठ गया। विनायक डर गया। पर नशे में इतना धुत था कि आज वो कुछ भी कर सकता था। 
“ये क्या कर रहे हो बेटा? पैसा चाहिए तो मांग लेते। चोरी क्यों कर रहे हो?” मोहनलाल बोला।
विनायक नशे में धुत था। वह बोला,”मांग लूं? क्यों मांगू मैं तुमसे…. तुम कौन हो मेरे?” 
उधर हेमंत ने सारा पैसा बैग में समेट लिया था। वो बाहर की तरफ भागते हुए बोला,”चल भाई, जल्दी कर।”
विनायक जैसे ही दरवाज़े की तरफ भागने लगा मोहनलाल झट से दरवाज़े के सामने आकर खड़ा हो गया।
“ऐसी गलती मत करो विनायक। बेटा ये रास्ता तुम्हें सिर्फ पतन की तरफ ले जाएगा। अभी भी समय है रुक जाओ।” मोहनलाल गिड़गिड़ाते हुए बोला।
“मेरे सामने से हट जाओ वरना अंजाम बहुत बुरा होगा।” विनायक ने अपनी जेब से चाकू निकाल उसे डराते हुए कहा। 
बाहर खड़ा हेमंत बोला, “डरा क्या रहा है मार दे भाई। तेरी मां से शादी कर इसने वैसे ही तुम्हें मार डाला है। मार…. विनायक…. जल्दी वरना पुलिस आ जाएगी।” 
हेमंत विनायक को उकसा रहा था। विनायक का दिमाग वैसे ही नशे में धुत होने के कारण काम नहीं कर रहा था। शोर सुनकर उसकी मां भी जाग गई। उन्होंने उठकर जैसे ही अपना चश्मा पहना, वहां का नज़ारा देख उनके मुंह से चीख निकल गई। 
विनायक मोहनलाल के पेट में चाकू से बहुत तगड़ा प्रहार कर चुका था। मोहनलाल फर्श पर तड़प रहा था। मां को भागते हुए आकर देख हेमंत विनायक को खींचकर वहां से ले गया। 
सुषमा जब तक मोहनलाल के पास पहुंची, वो अपनी आखरी सांस ले रहा था। सुषमा का हाथ अपने हाथों में लेकर बोला,”माफ करना… सुषमाजी मैं विनायक को….ग़लत करने से रोक नहीं पाया….” यह कह उसने वहीं दम तोड़ दिया।
लगभग एक हफ्ते की मेहनत के बाद पुलिस ने विनायक और उसके दोस्तों को पकड़ लिया। केस चला। उसके दोस्तों के पिता ने जैसे तैसे अपने बच्चों को लम्बी सज़ा से बचा लिया। पर विनायक को अपने पिता की हत्या करने के जुर्म में पंद्रह साल की सजा सुनाई गई। 
नशे की ग़लत लत ने और ग़लत दोस्तों के साथ ने विनायक के उज्जवल भविष्य को अंधेरे के गटर में डुबो दिया। एक हंसते-खेलते परिवार को उजाड़ दिया। उसके सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया। 
आस्था सिंघल
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