बुरी चीज है नशा,जब चढ जाए तो विनाश कर जाता है,
सही गलत के भूले मायने, सच नजर नही आता है!
नशे के रूप अनेको,कभी चढ जाए वो लालच बन कर
भाई-भतीजे का भेद मिटाकर, खून रिश्तो का भी वो कर जाता है,
नशा जब धारे रूप अभिमान का, तो मेरा मेरा चिल्लाता है,
मै-मै का पढकर पहाड़ा, पैरो की जूती सबको बनाता है!
नशा जब रूप पैसे का धरकर आए, तो हरपल रूप अपना दिखलाता है,
मजबूर को वो समझे तुच्छ प्राणी, दुत्कारने मे  सबको वो इतराता है,
शौक वो पाले महंगे- महंगे, इंसान को मारकर दुलत्ती, पालतू को वो प्यारा बताता है!
एक नशा है उस ईष्ट देव का, जो मुझे अति भाता है,
उस नशे मे डूब के प्राणी, पार भव से हो जाता है!
                                         श्वेता अरोडा
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