बबलू अपने बहन भाइयों मे सब से बड़ा था।वे दो भाई और एक बहन थे। मदनलाल (बबलू के पापा)जी एक जाने माने वकील थे । दिल्ली मे खूब अच्छी वकालत चलती थी आये दिन क्लाइंट घर पर आते थे कोई केस डिस्कस करने कोई जीत की खुशी में तोहफा देने।अकसर तोहफे मे शराब की बोतल ही होती थी।मदनलाल जी आवभगत करने मे कोई कौर कसर नही छोड़ते थे मेहमानों की।सो आये दिन घर मे शराब के दौर चलते थे।मदनलाल जी ने घर मे ही अलग से अपना आफिस बना रखा था।वही पर ही जाम बाजी होती थी कभी क्लाइंट के साथ कभी दोस्तों के साथ।बबलू बारह तेहरह साल का बच्चा था अकसर यही सोचता कि पापा आफिस का दरवाजा बंद करके कया करते है। मां भी अकसर परेशान हो जाती थी इन हररोज की पार्टियों से ।अब शराब के साथ खाने को भी तरह तरह की चीजें चाहिए।बबलू देखता था कि पापा लड़खड़ाते हुए किचन मे आते थे और मां से तरह तरह के स्नेक्स बनवा कर ले जाते थे बबलू और उनके बहन भाई का आफिस मे जाना मना था।
एक दिन बबलू की मां की तबीयत ठीक नही थी तब उसके पापा उसकी मदद से खाने का सामान आफिस ले जा रहे थे कि अंदर से उसके पापा के दोस्त ने बबलू को आवाज दी।अब मदनलाल जी मना कर नही सकते थे कि बच्चों का अंदर आना मना है क्यूं कि वो उनसे सीनियर ।जैसे ही बबलू वापिस जाने के लिए मुड़ा वो व्यक्ति दरवाज़े पर आ गया और लगभग खीचता हुआ बबलू को अंदर ले गया
अंदर का नजारा देखकर बबलू सकपका गया सारे कमरे मे एक अजीब सी दुर्गंध आ रही थी। सेंटर टेबल पर एक बडी सी बोतल चार गिलास रखे थे उसके पापा के दोस्त को नशा चढा हुआ था।उसने खीच कर उसे गोदी मे बैठा लिया और बोले ,”भाई मदन लडका जवान हो रहा है क्यूं इन सब चीज़ों से इसे दूर कर रहे हो ।वे बबलू की मुडकर बोले बेटा ये चीज ही ऐसी है सारे गमों को भुला देती है।“ मदनलाल जी ने अच्छा अच्छा कह कर किसी तरह बबलू को कमरे से बाहर किया।पर पापा के सीनियर की आखिरी बात बबलू के कानों मे तूफान मचा रही थी
वो बार बार यही सोच रहा था कि मां और पिताजी मे अकसर झगड़ा रहता है तभी पापा गम भुलाने के लिए ये पीते है ।कहते है बच्चों के मन मे कोई बात घर कर जाए तो वो निकलती नही यही बबलू के साथ भी हुआ उसे तो जंच गयी कि ये जो गिलास मे डालकर पापा पीते है ये गम भुलाने वाली दवा है।
एक दिन स्कूल में बबलू के मनथली टेस्ट मे नंबर कम आये टीचर ने सारी क्लास के सामने खड़ा करके बबलू को खूब डांट लगाई और डंडे से पीटा।वैसे बबलू को कोई फर्क ना पड़ता पर जब ये सारे काम उस लड़की के सामने हुए जिसे बबलू मन ही मन पसन्द करता था वो उसकी क्लास में पढ़ती थी।उसे तो ऐसा लग रहा था कि धरती फट जाए और वो उसमे समा जाए वो छुट्टी के बाद भी किसी से नही मिला घर आकर ना खाना खाया और ना किसी से कोई बात की बस चुपचाप अपने कमरे में चला गया । मां पूछती रही कि बेटा कया बात है तबीयत ठीक नहीहै कया?
बबलू बोला,”कुछ नही मां बस मन नही कर रहा कुछ खाने का ।“
मां ने सोचा हो सकता है दोस्तों के साथ कुछ खा लिया हो गा।वह भी अपने काम मे लग गयी।शाम को पडोस मे कीर्तन था मां तो वहां चली गयी । दोनों बहन भाई ट्यूशन पढ़ने गये हुए थे बबलू को आज की जो उसकी बेइज्जती हुई थी वो बर्दाश्त से बाहर हो रही थी ।उसे बार बार यही लग रहा था कि चंचल क्या सोच रही होगी मेरे बारे मे ।
अचानक उसे पापा के दोस्त की बात याद आ गयी वो आफिस मे गया और दराज मे से शराब की बोतल निकाली और गट गट पी गया । कड़वी तो बहुत थी पर गम भुलाने की दवा जो थी ।जब मां घर आयी तो देखा बबलू के सिर पर नशा चढकर बोल रहा था वो अपनी टीचर को गन्दी गन्दी गालियां दे रहा था।जान से मारने की धमकी दे रहा था इतने मे मदनलाल जी आ गये बेटे की यह हालत देखकर हक्के बक्के रह गये।बेटे से पूछा कि तुम ने शराब क्यों पी।
“पिता जी आज मै बहुत दुखी हूं ।आप के दोस्त ही तो कह रहे थे कि इससे गम दूर होता है।इसी लिए………”
मदन लाल माथा पकड़ कर बैठ गये आज अपनी करनी का फल बेटे की इस हालत मे देख रहे थे ।आज उन का किशोरवय का बेटा उनकी ही राह पर चल पड़ा था।
बबलू को इसकी लत सारी उम्र दुःख देती रही।एक टाइम ऐसा आ गया कि घरके बरतन बेचकर घर चलता था।मदन लाल जी की एक गलती ने भरा-पूरा परिवार तबाह कर दिया।
रचनाकार:-मोनिका गर्ग
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