” नही पापा अब यह नहीं चलेगा। आपने मम्मी को आज तक बहुत मार पीट लिया। अब एक शब्द भी बोला तो मुझे आपके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट लिखानी होगी। ” अमर ने यह कहते हुए अपने पापा का हाथ पकड़ लिया।
“शाबास यह तू बोल रहा है? अभी तक कुछ करता तो नहीं और चला मुझे नसीहत देने ।देखो तो आज चींटीं के भी पर निकल आये है। ” रामलाल अपनी आँखें लाल करता हुआ बोला
” आपने आज तक मम्मी को दिया ही क्या ? यदि मम्मी नही कमाकर लाती तो हम सब भाई बहिन रेलवे स्टेशन पर भीख माँग रहे होते । आपको तो हर रोज शराब चाहिए। यदि उसके लिए पैसे नही मिले तो आप मम्मी को किस तरह मारते थे। अब मै भी कुछ कमाने लगा हूँ । आज के बाद मम्मी काम नही करेगी।। ” अमर ने जबाब दिया।
आज सरला खचश भी थी और दुःखी भी थी। दुःखी इसलिए थी कि वह बेटे द्वारा अपने ही बाप का अपमान होते नहुं देखना चाहती थी।
सरला बोली,” बेटा अमर यह तेरे पापा है पापा के लिए ऐसा नही बोलते है हाँ मै मानती हूँ इन्हौने तुम्हारे बारे में कभी नही सोचा। लेकिन इनके हौने पर हम सुरक्षित है हमसे कोई आँख उठाकर बात नही कर सकता है। “
” नही मम्मी अब यह नहीं होगा।अब हम आपको इस तरह पिटते नहीं देख सकते है़। इनसे कहदो जहाँ जाना चाहे वहाँ चले जाय लेकिन आपने बहुत सहन कर लिया अब सहन नही करने देगै। यदि इनको हमारे साथ रहना है तो नशा छोड़ना होगा। ” अमर ने सख्त होते हूए कहा।
सरला अपने पति को समझाते हुए बोली,” अब आपको भी समझना चाहिए। जब बेटा बडा़ होजाता है तब उसे अपना छोटा भाई समझना चाहिए ःर बडे़ बच्चौ के सामने आपको भी हाथ नहीं छोड़ना चाहिए।
रामलाल की कहानी इस प्रकार थी।
रामलाल पहले शराब को हाथ नहीं लगाता था। परन्तु एक बार दोस्तौ ने कसम देकर पिलादी उसके बाद उसको ऐसी आदत पडी़ कि शराब उसकी जिन्दिगी बन गयी।
इस शराब की लत के कारण उसकी नौकरी भी चली गयी। रामलाल के परिवार में एक बेटा व एक बेटी थी। शराब की लत के बाद उनके घर में खाने के लाले पड़ने लगे। रामलाल घर का सामान बेचकर शराब पीने लगा। दोंनौ बच्चौ को स्कूल से निकालने का नोटिस आगया। तब सरलाने सिलाई का काम शुरू किया।
रामलाल सरला से मारपीट करके पैसे छीन लेजाता और शराब पीकर घर आता था। दोंनौ बच्चे उससे डरने लगे। वह जब घर आता वह डर से छिपजाते थे। लेकिन सरला ने हार नहीं मानी आज उनको पढा़कर काबिल बनाकर उनको बाप के सामने खडा़ करदिया। आज वही बच्चे अपने बाप से पूछ रहे थे आपने हमारे साथ ऐसा क्यौ किया ?
अब अमर को एक कम्पनी में जाब मिलगयी थी। इसलिए वह अपनी माँ को सुख देना चाहता था। जिसकी वह हकदार थी। आज वह अपने बाप के सामने तन कर खडा़ था। उसने माँ के मना करने पर भी अलग किराये का मकान लेलिया और माँ कं साथ लेजाने की जिद करने लगा।
परन्तु सरला अपने पति को अकेला छोड़कर जाना नही चाहती थी। तब वह अपने पापा से बोला,” पापा आप देखरहे हो इसे कहते है पत्नी धर्म। आपने इनको आजतक क्या दिया केवल मारपीटकर इनकी कमाई को भी छीनकर लेगये। इन्हौने आपके खिलाफ कभी एक शबाद नही बोला। अब भी समय है सुधर जाओ इनसे अपने गुनाहौ की माँफी मांगलो।
आज रामलाल को भी महसछस हुआ कि वह सरला का गुनहगार है उसे उससे माँफी मांगनी चाहिए।
रामलाल की आँखौ से आँसू बहने लगे। वह सरला से बोला,” सरला तू बास्तव मे देवी है मै तेरा गुनहगार हूँ। तेरा अपराधी हूँ। आज तूने मेरी आँखें खोलदी हैं। पत्नी ही है जो बुरे समय में भी अपने पति का साथ नहीं छोड़ती है। तू मुझे सजा देने की हकदार है मैने तेरे दर्द को समझा ही नही। मैं आज के बाद इस शराब को कभी हाथ नहीं लगाऊँगा। “
अमर हसता हुआ बोला,” पापा हाथ नही अपितु यह कसम खाओ कि आज के बाद मै कभी इससे होठ व जीभ नहीं लगाऊँगा।”
हाँ ऐसा ही समझ और उसने अमर को अपनी बाँहौ मे भर लिया और बोला,” छोरा तू आजकल बहुत बडा़ होगया हैरे। आज तूने मेरी आँखौ पर पडा़ पर्दा हटा दिया है। “
आज रामलाल के घर में फिर से खुशियाँ लौट आई थी। नशा एक ऐसी बीमारी है जिसने हसते हुए परिवारौ को भी खत्म कर दिया है। इससे हमेशा दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
इस नशे ने हमारे देश के युवाऔ का भविष्य अन्धकारमय बना दिया है। जो भी नशा बनाता है अथवा बेचता है इन दोनौ को सजा होनी चाहिए। नशाबन्दी पूरे देश में समानरूप से लागू हौनी चाहिए।
रचनाकार का नाम :- नरेश शर्मा “पचौरी “