हर सुबह स्वर्ण सी चमक उठे ,
हर दोपहरी मोती बनकर।
हर शाम मधुर यादों की हो,
हर रात कटे चंदन शीतल।
दिन श्वेत हो रजतपर्ण सा,
हीरक सम जगमग हो यामिनी।
मौसम हेमंत और वसन्त रहे,
खुशियों की छाये दामिनी।
आँखो में सतरंगी सपने हों,
मन में उल्लास की कली खिले।
बिछी सेज हो कोमल फूलों की,
जीवन में उन्नति की फली मिले।
कुछ नए हाथ हों नए साथ हों,
सबका बेमिशाल कारवां बने।
नीड़ में अपने अविरल खेलें,
नवजात किलकारी की समां बंधे।
नव रत्नों से दीप्त रहें,
नवज्योति जले नवजीवन में ।
नवल पुष्प से महक उठें,
नव वर्ष के नव आँगन में।
स्नेहलता पाण्डेय ‘स्नेह’