मांण दुर्गा के नौ रूप हैं,
 नौ रूपों की महिमा अपनी,
इच्छित वर है देने वाली,
 दुष्ट, पापियों की है विनाशिनी।
प्रथम रूप है शैलपुत्री,
 पर्वतराज हिमालय घर जन्मी,
बनी आभा मां के आंचल की,
 गौरव बन पिता का मस्तक दमकी।
ब्रह्मचारिणी दूसरा रूप है मां का,
 शिव पाने को भीष्म तप किया,
किया विवश शिव के ब्रह्मचर्य को,
 हर विघ्न सहर्ष स्वीकार किया।
अर्ध चंद्र मस्तक पर धारे,
 तीसरा रूप चंद्रघंटा कहलाई,
दश हस्त शस्त्रों से सुसज्जित,
  कनक के समान वर्ण है पाई।
इषत् हास्य से ब्रह्मांड रचने वाली,
 कूष्माण्डा चौथा रूप है मां का,
भानू सम कांति काया की,
 सिंह है वाहन इस देवी का।
स्कंदमाता देवी का पांचवा रूप,
 कमल-आसन पर है विराजती,
काली को बनाया कवि-शिरोमणि,
 भक्तों का जीवन है संवारती।
महर्षि कात्यायन की पुत्री,
 कात्यायनी मां का छठा रूप,
ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी,
  इनकी छटा सुंदर, अद्भुत,  अनूप।
सातवीं शक्ति कालरात्रि रूप में,
 दानव कांपते नाम से जिनके,
त्रिनेत्र धारणी, गर्दभ वाहिनी,
  रात्रि समान वर्ण हैं इनके।
चंद्र सम मुख महागौरी का,
  आठवीं रूप में पूजी जाती हैं,
श्वेतांबरा, वृषारूढ़ा नाम इनका,
 रक्षा सुहाग की सदा करती हैं।
नौवीं शक्ति मां सिद्धिदात्री,
 आठों सिद्धियां प्रदान करती हैं,
नौ रूपों में बसने वाली हे माता,
 दुनिया तुमको शीश नवाती हैं।
स्वरचित रचना
रंजना लता
समस्तीपुर, बिहार
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