हर्षित हुआ धरा का कण-कण,
प्रकृति ने भी श्रृंगार किया है।
उल्लास उमंग साथ में लेकर,
हिन्दू नवबर्ष का आगमन हुआ है।
सिंदूरी सी आभा लेकर सूरज,
पूरब से पश्चिम जाता है।
नई उमंगों नई तरंगों के संग,
नव संवत्सर आता है।
करें जागरण माता का सब,
गूंजे धरा गगन जयकारों से।
मंगल आरती घर-घर होवे,
झांझर ढोल मंजीरों से।
सम्पूर्ण विश्व के मालिक का,
आया है अवतरण दिवस देखो।
आध्यत्मिकता से परिपूर्ण हुआ,
सृष्टि का आज कण-कण देखो।
नव पल्लव से सजी हुई है,
नवकुसुमित अमुआ की डाली।
प्रीत सुधारस से भरी हुई है,
गाती गीत कोयलिया काली।
महके गुड़हल, गेंदा, पलाश,
खेतों में खनकी गेंहूँ की बाली।
पूर्ण प्रतीक्षा हुई हलधर की,
घर-घर में देखो छाई है खुशहाली।
राग-द्वेष सब मिटाकर मन के,
सबको प्रेम से गले लगाएं।
जाति धर्म मज़हब को भुलाकर,
आओ हम सब नवबर्ष मनाएं।
शीला द्विवेदी “अक्षरा”
उत्तर प्रदेश “उरई”