नया दौर है,आया नया जमाना
नर पर लगती अब भारी नारी है।
अपने अधिकारों की बात करे ये
नहीं रही ताड़न की अधिकारी है।
चूल्हे चौके से बाहर निकल कर 
इसने इक नयी पहचान बनाई है।
पिसती नहीं प्रतिदिन घुन की तरह
घर के सदस्यों से पापड़ बिलवाती है।
खिला सबको न रहे भूखी प्यासी 
फुरसत में मीठे अंगूर भी खाती है।
आधुनिक युग के साथ बदले कायदे
छल से बाहर जानती अपने ये फायदे।
कदम मिला रही पुरुषों के साथ जब
तो उन्हें अपने भी काम सिखाती है।
स्वरचित
शैली भागवत “आस” ✍️
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