राजा उत्तानपाद का पुत्र था वो।
अपनी मा सुनीति का दुलारा था वो।
पर विमाता सुरूचि को खलता था वो।
भोला-भोला,सरल,संतोषी था वो।
मासूम चाह पिता के गोद में बैठूं।
स्नेह के अथाह सागर में पैठूं।
राजसिंहासन की नहीं थी भूख।
पर पितृप्रेम की ओर स्वाभाविक रूख।
एक दिन विमाता ने पितृ गोद से हटा दिया
भोले बालक के मुख पर विषाद की घटा दिया।
ममतामयी मा ने पुत्र का थोड़ा दुख बॅंटा दिया।
हरि भक्ति की सीख दे,मुख पे हर्ष की घटा दिया।
कठिन तप किया बालक ध्रुव ने।
पिता क्या परमपिता का गोद पाया ध्रुव ने।
हरिकृपा से यश,तेज पाया ध्रुव ने।
राजसिंहासन क्या ध्रुवलोक पाया ध्रुव ने।
अनंत नभ के उत्तर में बसता है जो तारा।
वहीं तो है हरिभक्त महान ध्रुवतारा।
सप्तऋषि के सामने बसा जो तारा।
सबसे चमकीला है यह ध्रुवतारा।
          -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण।
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