सुदूर कहीं ब्रह्माण्ड में चमकता एक सितारा
सदैव उत्तर दिशा में जो नज़र आता
जो तारा
रोशनी असीम लेकर ये रहता है सदा
खड़ा
आकार इसका सूर्य से भी है बहुत ही
बड़ा
सूर्य के तेज से भी कई गुना अधिक
इसका तेज
बरसों से दिशा ज्ञान कराता नहीं पड़ता निस्तेज़
कहते है ये तो उस अडिग बालक के
समान
आसमान की गोद में जिसने सदा के
लिए पाया स्थान
अपनी ही जगह रहता आया है जो स्थिर
ध्रुवतारा आभा मय,न उदित होता न
ही अस्त
स्वरचित
शैली भागवत ‘आस’
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