ध्रुवतारा अर्थात जो अटल हो,दृढ़संकल्पी हो और आत्मविश्वासी हो। जो ठान ले उसे परिपूर्ण करके ही दम ले।जिसके मार्ग को कोई भी लोभ विचलित न कर सके।
   निश्चित रूप से ऐसा ही व्यक्तित्व सर्वत्र अनूठी छाप छोड़ने में समर्थ हो सकता है अपने अस्तित्व को गरिमामण्डित कर सकता है।
   हमारे पौराणिक ग्रंथों की कथाओं में “ध्रुव” की कथा उल्लेखनीय, स्मरणीय और अनुकरणीय है।
   मैं संक्षेप में कहूँ तो  राजा उत्तानपाद, उनकी दो रानियों सुनीति एवं सुरुचि तथा थ्रुव और उत्तम से होती हुई ध्रुव पर आकर ही समाप्त होती है। बालक ध्रुव के व्यक्तित्व की उपरोक्त वर्णित विशेषताएँ ही उसे ध्रुवतारा का अद्वितीय, अनुपमेय पद और आकाश मण्डल मे अक्षय स्थान दिलाने में सफल हुईं हैं जिसे आज तक कोई दूसरा अधिग्रहीत न कर सका है और न ही कर सकेगा।
धन्यवाद!
राम राम जय श्रीराम!
लेखिका –
सुषमा श्रीवास्तव 
मौलिक विचार 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
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