साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु प्रदत्त विषय धोबी का कुत्ता,घर का न घाट का।

गीत

क्या मिलिए ऐसे लोगों से…….रहे यहां के,

जो न वहां के,करे जो काम उचाट का।

धोबी का कुत्ता हो जाता,

घर का रहे न घाट का।1

विशवामित्र ने इक राजा को तप से स्वर्ग पटाया है।

गिरा स्वर्ग से तब मुनिवर ने,बीच में उसे थमाया है।

बीच में लटक रहे त्रिशंकु,घर का रहा न घाट का 0………..

2 अपने पर जो रहे अटल न ,इधर उधर जो जाते हैं।

कोई भरोसा करे न उन पर, केवल अपयश पाते हैं।

माया मिली न राम मिले, ये जुआ है, झूठ झपाट का 0…..

3 करता कोई नही भरोसा, उनकी किसी भी बात पर।

दल बदलू न रहे कहीं के प्रश्न चिन्ह लगा साख पर।

बन गया वो धोबी का कुत्ता, घर का रहा न घाट का 0………….

4 दो स्थानों पर दावत थी, दोनों काफी दूर थे।

खाना एक जगह न खाऐ, दूसरी आस में चूर थे।

दोनो जगह मिला न भोजन, गुप्ता जी अरु जाट का 0…………

5 धोबी के कुत्ते ने सोचा, मेरे संग में धोका है।

मालिक के घर चोर घुसे, किंतु कुत्ता न भौका है।

मार भगाया तब कुत्ते को, घर का रहा न घाट का 0………..

6 दो नावों की कीन सवारी,इक पत्नी इक महबूबा ।

पोल खुली पत्नी ने त्यागा, साथ छोड़ गई महबूबा।

धोखेबाज का नाम है, घर का रहा न घाट का 0 …..

धोबी का कुत्ता हो जाता, घर का रहे न घाट का।

बलराम यादव देवरा छतरपुर

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