मैं इस जगत का एक,ऐसा धूल का फूल हूँ।
मैं स्वयं पापी नहीं हूँ,मैं पापियों की भूल हूँ।
किसी कमजोर समझ, निकम्मे की भूल हूँ।
मैं किसी के चाह में,खिला धूल का फूल हूँ।
अजनबी रिश्तों की,संबंधों का एक फूल हूँ।
परिणाम सोचे बिना,खेले खेल वही भूल हूँ।
बेशर्मी बेहयाई का,अनचाहा खिला फूल हूँ।
अपनाने की हिम्मत न हो,ऐसा एक शूल हूँ।
अपना सके न वो,समाजिक डर की धूल हूँ।
मैंतो तेरे उस गलती का,एक मासूम फूल हूँ।
ना पिता का ही पता,ना माँ का ऐसी धूल हूँ।
मैं तो जवानी की उम्र की,गलती का फूल हूँ।
मुझे अनाथालय ने पाला,पोशा ऐसा फूल हूँ।
जिंदा जरूर हूँ मगर,मैं तो किसी की भूल हूँ।
लोगों के धर्मार्थ सेवा से,जीवन मिला शूल हूँ।
पला पढ़ा तो किन्तु,सोचूँ मैं किसकी भूल हूँ।
ईश्वर के मर्जी बिना बच्चे,न मिलते मैं फूल हूँ।
ईश्वर ही जाने कि मैं,किनके गल्ती का धूल हूँ।
आया हूँ धरा पर तो,किसी के घर का फूल हूँ।
माना कि अभी उसके लिए,मैं तो एक शूल हूँ।
वे भी नजर रखे होंगे,जिस कोख का फूल हूँ।
मेरी तरक्की देख के,पछतायेंगे मैं ही भूल हूँ।
मैं इस  जगत का ऐसा, एक  धूल का फूल हूँ।
मैं स्वयं पापी  नहीं हूँ, मैं पापियों  की भूल हूँ।
रचयिता :
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
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