मनुष्य पर ढा रहा है कहर धूप,
सूख गए है सब नदी नाले कूप।
पशु पक्षी भी हैं बहुत अब त्रस्त,
न जाने कब होगी? ये बरसात।
दाने पानी के लिए हैं पक्षी प्यासे,
सब रखा करो छात में पानी प्यारे।
भूख से है सब पशु पक्षी बेहाल,
वर्षा आते ही सब हो जाते नैहाल।
थोड़ा सा करो दया पक्षियों पर,
बैचारे ढुंढ रहें हैं नल में भी पानी।
प्यास से न जाने कितनों ने जान,
अपनी अब होगी ? देखो गंवाई।
कुछ तरस करो तुम है ये बैजुबान,
न मांगे तुम से कुछ भी ये जान।
बस मिल जाये एक दो बूंद पानी,
तो बच जाएंगी जान हमारी।
स्वरचित अप्रकाशित मौलिक
कुमारी गुड़िया गौतम (जलगांव) महाराष्ट्र